Thursday, February 2, 2017

साईं इतना दीजिये, जामे कुटुंब समाय,मैं भी भूखा न रहूँ, साधू भी भूखा न जाये
रवि अजितसरिया

बुधवार को देश का बजट पेश करते हुए, वित्त मंत्री ने कहा जब देश के अधिकतर लोग आयकर नहीं देतें, तब आयकर नहीं देने वालें लोगों का भार, सच्चे और ईमानदारी से कर देने वालों पर पड़ता है l उनका इशारा देश के 2.71 करोड़ लोगों की और था, जो इमानदारी से आयकर दे रहें है l सरकार द्वारा यह एक बड़ी स्वीकारोक्ति है l यह बात गौर करने लायक है कि देश की कुल जनसँख्या का 2.24 प्रतिशत लोग ही आयकर देतें है l विमुद्रीकरण के पश्चात, इस बात पर गहरा बवाल मचा और चर्चा भी हुई कि इतने बड़े देश में सिर्फ सवा दो प्रतिशत लोग ही आयकर देते है, जिन पर इस समय नोटिसों और चैकिंग की तलवार लटकी हुई है l वित्त मंत्री के भाषण के पश्चात अब यह स्पष्ट हो गया है कि सरकार की निगाह अब इस और गयी है l कर दाताओं का मानना है कि सरकार की तरफ से उनको पुरस्कृत किया जाना चाहिये, और उनको अलग से सुविधाएँ दी जानी चाहिये, जिससे अन्य लोग भी कर देने की और आकर्षित हो l पर ऐसा आज तक भारत के इतिहास में नहीं हुवा है l चाहे वह राज्य का कर हो या फिर केंद्रीय कर हो, कर दाताओं को हमेशा से संदेह भरी नजरों से देखा जाता है l उन पर तरह तरह की तोहमत लगाईं जाती है, प्रताड़ित किया जाता है l कर दाताओं का मानना है कि विमुद्रीकरण के समय देश के करदाताओं ने खुले हाथों से योजना का समर्थन किया था, जिसका नतीजा यह निकला कि उन पर जमा और निकासी के नाम पर नोटिसों की बोछार लगा दी गयी l अब, जब देश के कई राज्यों में चनाव है, और भारतीय जनता पार्टी को यह लगने लगा है कि छोटे और माध्यम श्रेणी के व्यापारी, जो भजपा का वोट बैंक है, बिखर रहें है, वित्त मंत्री उनके लिए महरम लेकर आयें है, उनको पुचकार रहें है l वे यह भी कह रहे है कि सरकार अब लोगों के पैसे का संरक्षक बनेगी, जिससे देश का पैसा चलत में रहेगा, जिससे बेहद कम कीमत पर उधारी दी जा सकेगी l अब सवाल यह उठ रहा है कि जो लोग सरकार पर विश्वास करके कर देने कोई संकोच नहीं करते, उनको वापसी में क्या मिल रहा है l किस तरह से उनको लाभान्वित किया जा रहा है l सरकारी महकमा तो ऐसी कोई कृतज्ञता जाहिर नहीं कर रहा, बल्कि बाबुओ का रवय्या कर दाताओं के प्रति हमेशा से ही नकारात्मक और आक्रामक ही रहा है, चाहे किसी भी विभाग का हो l जो इमानदारी से विक्री कर और आय कर देतें है, उनके लिए जिंदगी की सच्चाई यह है कि वें तमाम तरह की कर प्रावधानों के चक्कर में फंस कर अपनी जिंदगी को नरक बना लेतें है l इधर देश की 97 प्रतिशत जनसँख्या, जो कर नहीं देती, बड़े आराम से अपना जीवन व्यतित कर रही है l हाथों में झंडा लिए, राजनैतिक पार्टियों के लिए रैलियाँ निकलना, धरना और प्रदर्शन देना, जिससे ऐसा लगे की देश के लोग उस पार्टी के साथ है, जो उनका भला कर रही है l तीन रुपये चावल, चद्दर, कम्बल और सूत का मुफ्त वितरण, क्या यही चरित्र रह गया है,


राजनैतिक पार्टियों का l कब तक देश ‘कल्याण’ की तर्ज पर इमानदार देश वासियों की मेहनत का पैसा यु ही लुटता रहेगा l  बाकी तीन प्रतिशत जनता उनका बोझ जो उठा रही है l देश में इतना ज्ञान, इतना धर्म, इतने उपदेश, फिर भी कर दाताओं की संख्या बढ़ नहीं रही l कही कर नहीं देने वालों में ज्यादतर राजनैतिक पार्टी का वोट बैंक तो नहीं जुड़ा हुवा है, जिसको छेड़ने की हिम्मत किसी भी पार्टी में दिखाई नहीं दे रहा है l किस तरह के रूपांतरण की बात हम कर रहें है, जहाँ इतनी असमानताएं व्याप्त है, आय और विकास के मामलें में l किस तरह का आकलन सरकार कर रही है, जिसमे गावों के विकास का नक्शा, हर वर्ष तैयार होता है, पर गावं का विकास नहीं होता l वे वैसे एके वैसे ही बने रहतें है l कही करोड़ो रूपये, जो सरकार को कर के रूप में मिल रहें है, वे कर्मचारियों के वेतन मद में खर्च तो नहीं हो रहें l सवाल कई है, जिनका जबाब आम आदमी खोज रहा है l जो जनप्रतिनिधि चुन कर जातें है, उनका वेतन और सुविधाए मिलती है, वह आखिर लोगों द्वारा दिए कर के बनिस्पत ही तो है l फिर देश के कर दाताओं को अपने द्वरा दिए गएँ कर का हिसाब मांगने का पुरे हक़ है l कर उगाही के लिए एक बड़ा सिस्टम इस समय देश में कार्य कर रहा है l क्या अमीर देशवासी, जो आयकर प्रणाली से बाहर है, उनको देश के विकास कार्य में योगदान स्वरुप सम्मिलित नहीं किया जा सकता l पर बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे l गौरतलब है कि देश में इस वक्त करीब 30 करोड़ के करीब पेन कार्ड होल्डर है l इनमे से करीब 3 करोड़ लोग ही आयकर देतें है l इस समय देश एक विचित्र स्थिति से गुजर रहा है, विमुद्रीकरण के असर अभी भी साफ़ दिखाई दे रहा है l लोगों के जीवन की गुणवत्ता में कोई खास असर दिखाई नहीं दे रहा l इंस्पेक्टर राज अभी भी जारी है l ऐसे में आधी-अधूरी विकसित अर्थव्यस्था में संस्कार, नैतिकता और धर्म की बातें करना बेमानी है l जो लोग इंस्पेक्टर राज के दंस को भोग रहें है, उनसे कोई पूछे कि क्या विमुद्रीकरण के पश्चात देश में कुछ नया हुवा है l सभी समीकरण इतनी मजबूती से बने हुए है कि इनको तोड़ना बहुत मुश्किल हो गया है l फिर भी आम धरना यही है कि देश तकनिकी रूप से प्रगति करें, जिसमे मानवता के विशाल कणों के भण्डार रहे, मानव हस्तक्षेप कम हो, जिससे व्यापार, पूंजी, उत्पादन और वितरण जैसे महत्वपूर्ण कार्य में सभी सम्मिलित हो सकें l परिवार, परंपरा, संस्कार और संकृति से कोई वंचित ना हो, जिससे देश की विशिष्टा बनी रहे, देश प्रेम बना रहे l देश में कोई भूखा न रहें l         

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