Saturday, July 25, 2020

कम खर्च करना ही एक नई जीवन पद्दति की मांग है


कम खर्च करना ही एक नई जीवन पद्दति की मांग है
पुरे विश्व में कोविद 19 संकट के शुरू होने के पश्चात अंग्रेजी का दो नए शब्द इजाद हुए l न्यु नार्मल(नया सामान्य), जिसके मायने है कि कोविद संकट के पश्चात चलने वाली जिंदगी और उसके नए नियम l शायद ही किसी को पता था कि जीवन में कुछ ऐसा बड़ा संकट आएगा, जिसमे हर क्षेत्र में उथल-पुथल मच जाएगी और मानव और जीव-जंतु अपने अस्तित्व के लिए दुबरा संघर्ष करते हुए दिखाई देंगे l इस पृथ्वी के अस्तित्व के आने के पश्चात, पिछले पचास करोड़ वर्षों में, इसने पांच बार अपना संपूर्ण विनाश देखा है, जो कि हिम युग के पहले के युग से शुरू हो कर अभी के ‘छठवे विलुप्त’ होने की कगार पर है l कोविद संकट इसमें एक कड़ी है l पर हर बार पृथ्वी दुबारा से हरी-भरी हो कर उठ खड़ी होती है l इसमें जीवन के अति सूक्ष्म कण मौजूद है कि वें दुबारा जीवन से भर जाते हैं l यह बात तो तय है कि कोविद संकट के पश्चात हमारी जिंदगी पहले जैसी नहीं होगी l कई चीजे बदल जाएगी, जिसमे रहन-सहन के नए तरीके और जद्दोजहेद आधारित जीवन पद्दति होगी l यह माना जा रहा है कि कम खर्च करना और छोटी छोटी खुशिया ढूँढना अब नई सदी की मांग बन गयी हैं l नया सामान्य अब वो सामान्य नहीं है, जो उपभोक्तावादी संस्कृति पर टिका हुवा था l तीज-त्यौहार, शादी और अन्य समारोह अपनी परंपरागत तौर–तरीके को खोते हुए एक नए क्षतिज पर चढ़ गए है, जिसमे मार्केटिंग की चासनी से लिपटे हुए संस्कार उसके नए रक्षक बन गए है l अत्याधिक खर्च और दिखावे से त्रस्त माध्यम वर्ग और निम्न माध्यम वर्ग को कई त्योहार बोझ से लगने लगे है l इतना ही नहीं, शादियों में जरुरत से ज्यादा दिखावे ने लोगों के बजट को बुरी तरह से बिगाड़ कर रख दिया है l एक नए सामाजिक परिवेश की सृष्टि हो गयी है, जिसे मध्यम वर्ग नकारने के लिए तैयार है, पर उपभोक्तावादी संस्कृति उसे बार बार ऐसा करने से रोक रही है l जब देश में लॉकडाउन शुरू हुवा था, तब ऐसी सैकड़ो शादियों के महंगे रिसेप्शन कैंसिल हो गए थे, जिनमे हजारों के तादाद में मेहमान बुलाये गए थें l कई शादियाँ आगे की तिथि पर पुनर्निर्धारित हो गयी थी l लॉकडाउन के दौरान हमने कईयों की बारात जाते देखा, जिसमे कुल बीस लोग ही शामिल थे l शायद ‘नया सामान्य’ युग में एक सामान्य शादी ही एक जरुरत बन गयी है l मेहमानों को नहीं बुलाये गए, और किसी को कोई आपत्ति भी नहीं हैं l ऐसा इसलिए हुवा, क्योंकि समय की मांग है l अब इस नए सामान्य के दौर में तीज त्यौहार और मंगल को किस तरह से मनाये, इसके तरीके भी हमे ही खोजने हैं l कोविद एक अवसर बन सकता है, एक सामाजिक बदलाव का और एक नए समाज सुधार का l इसमें किसी दल संगठन की आवशयकता नहीं है, खुद ही हम इस नए अवसर का साक्षी बन, कल्पना के घोड़ों को दौड़ना है, जिससे सचमुच उत्सव की तरह लगे हमारे तीज त्यौहार l सभी लोग एक खुली हवा में सांस ले सके l जिनके पास कम है, वे भी और जिनके पास भरपूर है, वे भी l
स्नान, दान, परिमार्जन, पुण्यार्जन और वरण हमारे दर्शन से उठाये हुए कुछ अवसर है, जिनको हम अपनी संस्कृति का एक मुख्य अंग मानते आये हैं l कोविद के समय में सभी त्योहारों को घरों से मानाने पर मजबूर है l शादियों के मामले में स्थितियां थोड़ी भिन्न हैं l जब आमदनी के साधन संतुलित हो गए है, ऐसे में महंगे आयोजन की कल्पना करना चाँद को हाथ से पकड़ने जैसा हैं l एक प्रस्ताव आया है कि वर और वधु, दोनों पक्षों की आपसी सहमती से, शादी का आयोजन एक ही दिन में संपन्न हो, दिन में शादी और शाम को घर के लोगों के बीच पार्टी l प्रस्ताव में इसलिए दम है , क्योंकि शादी सप्तपदी और मंत्रोच्चारों के बीच संपन्न होने वाली क्रिया है, जिसको बड़ी सिद्दत से निभाया जाता है l दूसरी रस्मों को छोटा करके उनमे आवश्यक बदलाव किया जा सकता है l तभी हम यह कह सकते है कि हमने नए समान्य की और एक सार्थक कदम उठाया है l शादी विवाह पर इस चर्चा को करने के पीछे उद्देश्य यह है कि एक नई पहल आजकल के पढ़े-लिखे शिक्षित लोग करना चाहतें है l यह चर्चा इस लिए भी जरुरी है क्योंकि, पानी अब सिर से उपर चला गया है l माध्यम वर्ग अब त्रस्त हो कर बदलाव की उम्मीद कर रहा है l


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