Friday, November 8, 2019

मारवाड़ी, असमिया और जातिय संघर्ष


मारवाड़ी, असमिया और जातिय संघर्ष
असम में हमेशा से ही जातिय संघर्ष होते रहें हैं l भूमि पुत्र होने का दावा करने वाली ऐसी अनेकों जातियां है, जो समय समय पर अपने अधिकारों और प्रभुत्व की बात करके अन्य जातियों पर खास करके हिंदी भाषियों पर एक मानसिक दबाब डालती आई है l इसमें कोई नई बात नहीं है l उपर असम इस संघर्ष की भूमि रही है l भाषा आन्दोलन से लेकर असम आन्दोलन तक, सभी असमिया जाति और अस्मिता से जुड़े हुए आन्दोलन रहें है l स्थानीय, बहिरागत, थोलूवा और अब खिलोंजिया जैसे शब्द हमेशा से ही फिजा में उछालते रहें हैं l जब असम आन्दोलन शुरू हुवा था, यह आन्दोलन स्थानीय बनाम बहिरागोत(असम में बाहर के लोगों को इसी तरह से संबोधित किया जाता है) था, फिर मारवाड़ी युवा मंच ने इसकी आपत्ति जताई थी, तब आसू ने इसे भारतीय बनाम विदेशी आन्दोलन बता कर सभी भारतीय की विश्वास में लिया था l उस समय भी बड़ी संख्या में मारवाड़ी युवकों ने आन्दोलन में शामिल हो कर अपने असमिया होने का परिचय दिया था l असम में आन्चालिक्तावादी राजनीति करके सत्ता में आया जा सकता है l असम आन्दोलन इसका जीता जगता उदाहरण है l आसू और असम गण संग्राम परिषद् के नेताओं ने असम गण परिषद्(अगप) का गठन किया और सन 1985 में सत्ता में काबिज हो गयी थी, जिसको असमिया पुनर्जागरण की संज्ञा दी गयी थी l यह बात अलग है कि अगप अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई और 28 नवम्बर, 1990 को असम में राष्ट्रपति शासन लागु किया गया था l दिसपुर में 28 तारीख को सुबह ही मुख्यमंत्री और गृह मंत्री के कार्यालयों पर ताले जड़ दिए गए थे l यह इसलिए हुवा था, क्योंकि दिसपुर उन उर्ग्रवादियों पर अंकुश लगाने में नाकामयाब रही थी, जिन्होंने असम में आतंक मचा रखा था l बड़ी संख्या में हिंदी भाषियों की हत्या हो गयी थी l चंदा एक संस्कृति बन गयी थी l छोटे छोटे लड़कों का दिन दहाड़े व्यापारियों का धमकाना तो एक फैशन बन गया था l उस समय केचुवा की तरह काटे जाने की धमकी के बारे में पता चला कि ऐसी भी कोई धमकी हो सकती है l पर निरंकुश लड़कों को शासन की सह थी, तब उनका कोई क्या बिगड़ सकता था l एक कहावत है ना, जब सय्या भये कोतवाल तो डर कहे का l यह कहावत इस समय हरिप्रसाद हजारिका पर भी लागु होती है, जिसने फेसबुक के जरिये मारवाड़ी समुदाय के लोगो को खुली धमकी दे डाली है l हालाँकि हजारिका को उनके सभी पदों से हटा दिया गया है, पर इस पुरे प्रकरण से कुछ प्रश्न जरुर खड़े हो गए है l दुबारा अन्चालिक्तावाद पर आते है l एक बार एक पूर्व मुख्यमंत्री में मारवाड़ी को कालाबाजारी कहा था, वह भी सरेआम, चुनाव के समय l चुनाव के समय आन्चालिक्तावाद भावनाओं को भड़का कर उनसे वोट पा लेने का एक पुराना और सफल तरीका है, जिसको इस बार भाजपा ने भी अपनाया है l ऐसा लग रहा है कि क्षेत्रीयतावाद की आंधी को दुबारा से शुरू करने के लिए इस बार एक सर्व भारतीय पार्टी ने कौशिश शुरू की है l नहीं तो पहले के विधायक, फिर एक युवा मोर्चा के अध्यक्ष और फिर एक सांसद l सभी का सुर तो एक सा ही लग रहा है l मुझे लगता है कि असम में इस समय तीन बड़े मुद्दे हवा में तैर रहें है l नागरिकता संसोधन बिल(सीएबी), राष्ट्रीय नागरिक पंजी(एनआरसी) और असम समझोते की दफा 6(सेक्शन 6) l इन तीनों मुद्दों पर प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से राजनीति हो रही है l सतही तौर पर होने वाली घटनाओं की जानकारी हमें रहती है, पर परदे के पीछे की राजनीति का प्रभाव दूरगामी और सटीक रहता है l दफा 6 उस बेतरनी का नाम है, जिसको पार लगाना आसान नहीं होगा l मुझे यह भी लग रहा है कि जो यह आन्चालिक्तावाद की कायावाद हो रही है, वह 2021 में असम में विधान सभा के चुनाव के मद्देनजर हो रही है l क्षेत्रियात्वाद की भावना को प्रबल करके चुनाव में संख्याबल हासिल करने का बीड़ा इस समय कुछ लोगों ने उठाया है l पूर्वोत्तर को अगर गौर से देखें, तो पायेगे कि पूर्वोत्तर देश का वह हिस्सा है, जहाँ भिन्न भिन्न जातियां, जनजातियां और आदिवासी रहते है, जिनके लिए विकास के मायने अलग है, जिनके लिए वैश्वीकरण का कोई मतलब नहीं l जिनमे, कई पहाड़ी इलाके के लोग हवा, पानी और वायु को अपना आराध्य मानते हैI जनजाति और विभिन्न प्रजाति के लोग एक सामान्य  जीवन यापन करतें आये हैI एक समृद्ध लोक संस्कृति के वाहक, यहाँ के लोग साधारणतः एक साधारण जीवन जीने के आदी है I अभी भी पूर्वोत्तर के कुछ भागों में विकास की बयार नहीं बहने लगी है I पिछडापन, भिन्नता, असंतोष, गुलाम और उपनिवेश बनाने की भावना का पनपना, कुछ ऐसे कारण है, जिसकी वजह से पूर्वोत्तर में असंतोष पनपा I  यह भावना पिछले 30 वर्षों से लोगों के दिल में विद्यमान है, अधिक स्वायत्तता के लिए आन्दोलन शुरू होने लगे I जब असम में छात्र आन्दोलन शुरू हुआ था, एक ऐसा छात्र आन्दोलन जिसने शासन को भी हिला कर रख दिया था I तब यह मांग उठने लगी थी कि पूर्वोत्तर के राज्यों को भी अन्य राज्यों जैसे सामान अधिकार मिले, संसाधन के उपयोग के बदले उचित पारितोषिक प्राप्त हो I मालूम हो कि पूर्वोत्तर के असम में देश भर के 95% चाय उत्पादित होती है, जिनके स्वत्वाधिकारी देश विदेश के बड़े व्यापारिक घराने से है I तेल और प्राकृतिक सम्पदा से भरपूर पूर्वोत्तर अपने समग्र विकास की मांग करने लगा, जिनमे तेल और गैस के खनन पर उचित पारिश्रमिक मुख्य मांगों में शामिल थीl इतना ही नहीं, पडोसी देश बंग्लादेश से आये हुए लाखों अवैध नागरिकों के निष्कासन छात्र आन्दोलन की एक मुख्य मांग थी I पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों से भी अधिक स्वायत्त की मांगे उठने लगी I भारत द्वारा पूवोत्तर,खास करके असम को एक उपनिवेश की तरह उपयोग करने का आरोप लगाते हुए, बुद्धिजीवियों ने इस 6 वर्षों तक चलने वालें आन्दोलन को भरपूर सहयोग दिया था, जिसके चलते स् न 1985 में असम में क्षेत्रीय  राजनेतिक पार्टी असम गण परिषद भारी मतों से जीत कर सत्ता में आईl क्षेत्रीयता का शुरुआती दौर यही से शुरू हुवा,जो अब तक चल रहा है l
आज पूर्वोत्तर को खासकरके असम की और देंखे, तब पायेंगे कि विकास की बयार यहाँ तेजी बहने लगी है l व्यापार और वाणिज्यिक गतिविधियों में वृद्द्धि और केन्द्रीय सरकार की लुक ईस्ट पालिसी ने पूर्वोत्तर का एक समग्र विकास होने लगा है l इस तरह की बयानबाजी न सिर्फ व्यापारियों को हतौत्साहित करेगी, बल्कि उन क्षेत्रीयतावादी ताकतों को भी बल प्रदान करेगी, जिन्होंने वर्षों तक असम के विकास को संकुचित बनाये रखा था l व्यापार वाणिज्य में कार्यरत मारवाड़ी लोगों ने पूर्वोत्तर के विकास में एक बड़ी भूमिका निभाई है, जिसको नाकारा नहीं जा सकता है l उनको भी असम के सामजिक तानबाने का एक अभिन्न अंग माना जाना चाहिये l पुरे प्रकरण में उन लोगों पर भी ऊँगली उठ रही है जो असमिया माता की संतान तो नहीं है, पर दशकों से असम में असमिया हो कर रह रहें है l ऐसे लोगों की संख्या लाखों में है l ऐसे लोगों सभी भाषा-भाषी है, जिन्होंने अपने वास स्थान असम को ही बनाया है और असम के आर्थिक, सामजिक और सांस्कृतिक विकास के लिए भरपूर सहयोग दिया है, जिसका वर्णन समय समय पर किया जाता रहा है l आन्चलिक्तावाद जरुर करें पर  एक बृहत्तर असमिया समाज की कल्पना क्यों नहीं की जा सकती l           

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