Friday, May 25, 2018


शादियों में इवेंट का एक नया तड़का  

एक माध्यम वर्गीय शादी के आयोजन में कितनी राशि खर्च करनी चाहिये, इस बात पर हमेशा से विवाद रहा है l वैवाहिक रस्मों पर आधुनिकता का तड़का लगने से वें प्रासंगिक तो हो गयी है, पर वें दिखावे और फिजूलखर्ची की भेट चढ़ गयी l मसलन वरमाला की रस्म सबसे सजीव, महत्वपूर्ण और पवित्र मानी जाती है l कहते है कि भगवान राम ने माता सीता को प्रथम जयमाल पहनाया था l इस वरमाला की रस्म को इवेंट का तड़का लगने से वह एक पूरा का पूरा समारोह बन गया है l श्याम वरमाला, राम वरमाला, गन्धर्व वरमाला, इत्यादि.. l इसी तरह से एक नई रस्म आजकाल विवाह की रस्मों की सूची में अचानक जुड़ गई है l प्री वेडिंग फोटो शूट(विवाह-पूर्व चित्रण) अभी सबसे ताजा रस्म है, जो शादी से पहले लड़के-लड़की की सबसे पसंदीदा रस्म बन गयी है, जिसमे हिंदी फिल्मों की तर्ज पर आउटडोर लोकेशन पर शूटिंग की जाती है l मजे की बात यह है कि इन अन्तरंग दृश्यों को बड़े परदे पर शादी के दौरान सभी के सामने दिखाया जाता है l इस नई रस्म को लेकर हिन्दू समाज में इस वक्त भारी चर्चा है l संभवतः इवेंट वालों की झोली से यह रस्म निकल कर आई है, जिसको हिन्दू समाज ने लपक लिया है l इस रस्म को निभाने कितना खर्च करना है, इसका कोई मापदंड नहीं है l व्हात्स्सप्प और फेसबुक जैसे सोसिएल मीडिया पर प्री वेडिंग फोटो शूट पट लोगों ने ढेरों कमेन्ट दिए है l इतना ही नहीं, प्री वेडिंग फोटो शूट के लिए स्टूडियो और गूगल प्ले स्टोर पर एप्प बन गए है l देश के नामी-गिरामी फोटोग्राफर लाखों रुपये लेकर इस प्री वेडिंग फोटो शूट को संपन्न करवातें है l प्री वेडिंग फोटो शूट के अलावा ये स्टूडियो, प्री वेडिंग ट्रिप का भी आयोजन करतें है l    विदेश के महंगे लोकेशन पर इस तरह की प्री वेडिंग फोटोशूट की जा रही है l ऐसा माना जा रहा है कि मुंबई फिल्म इंडस्ट्री के कलाकारों को देख कर आम लोगों ने भी अपनी शादी को यादगार बनाने के लिए प्री वेडिंग फोटोशूट का आयोजन करतें है l प्री वेडिंग फोटोशूट को लेकर इस वक्त भारतीय समाज में खासी चर्चा है l अगर गौर से देखा जाये, तब इसमें कोई बुराई नजर नहीं आती है l यह किसी का भी एक निजी मामला हो सकता है, शादी के पहले के पलों को यादगार बनाने के लिए कोई भी अपने निजी पलों को कैमरे में कैद कर सकता है l इसका विरोध इसलिए हो रहा है, क्योंकि पहला, अन्तरंग दृश्यों को बड़े परदे पर दिखाने से यह एक बम्बईया फिल्म का एक शॉट की तरह लगता है, जिसको देख कर लोग सिटी बजातें है, अभद्र टिप्पणियां करतें है l दूसरा भारतीय समाज अभी भी इस तरह से विवाह पूर्व मिलन को पूरी तरह से समर्थन नहीं करता है l तीसरा, विवाह पूर्व की आजादी के कई खतरे है, जिसके डर से समाज के कई घटकों ने इस तरह की प्री वेडिंग फोटोशूट का विरोध किया है l चौथा, प्री वेडिंग फोटोशूट थोड़ा कित्रिम सा लगता है, इसमें धन और समय की बर्बादी है l जानेमाने वकील, समाजसेवी और सामाजिक आचार संहिता के पक्षधर रहे, संजय सुरेका कहते है कि प्री वेडिंग फोटोशूट के पश्चात, अगर किसी कारण से सगाई टूट जाती है, तब कोई एक पक्ष इसका अनावश्यक फायदा उठा सकता है, इतना ही नहीं वे आगे कहते है कि इवेंट वालों में शामिल कई लोग इसका दुरूपयोग कर सकते है l उनके पास कई ऐसे मामले आये, जिनमे शादी तक मामला जमा ही नहीं और सगाई टूट गयी, प्री वेडिंग फोटोशूट तक हो गई थी l सगाई टूटने के पश्चात, कुछ लोगों ने लड़कीवालों को तंग करना शुरू कर दिया था l वे कहते है कि यह एक विकृति है, जिसको रोका जाना अत्यंत जरुरी है l गुवाहाटी के जानेमाने चार्टर्ड अकाउंटेंट ओमप्रकाश अगरवाल कहते है कि समाज के प्रभावी नियंत्रण के अभाव में और बुद्धिजीवियों की निष्क्रियता से एक पारिवारिक समारोह, सार्वजनिक समारोह बन गया है। जब कुछ बड़े लोग शादी के समारोह को शान दिखाने का पर्याय बना लेते है, अपनी हैसियत समाज को दिखाने का साधन बना लेतें है, तो नई परम्परा बनने लगती है। अगर समाज के लोग सजग हो जाते, तो कह देते, कि हम तुम्हारी हैसियत बढ़ोतरी के कार्यक्रम से दूर रहेंगे। परन्तु हमारा मरा-मरा सा समाज और निष्क्रिय बुद्धिजीवी चल देते हैं, पंडाल में खड़े होकर पत्तल थाम लेते हैं। बस! एक सामाजिक रीति, कुरीति का रूप लेने लगती है। प्री वेडिंग फोटोशूट के नए आये संस्करणों को वे सामाजिक उपद्व की संज्ञा देते है l
 एकल परिवार के गठन के साथ ही सामाजिक वर्जनाएं टूटनी शुरू हो गयी है, हजारों लोगों के समाज के पास अब आचार संहिता के नाम पर है, बस कुछ छोटे-मोटे नियम, जिनकों भी लोग नहीं मानते l नए आये युवकों के कहना है कि सामाजिक वर्जनाये ट्राफिक पर लगे सिग्नल जैसी होती है, जो तेज गाड़ियों को एकाएक रोक देता है l विवाह जैसे पवित्र अनुष्ठान का गठन इसलिए किया गया, ताकि समाज में अनुसाशन बन रहे, और विवाह जैसे पवित्र बंधन हमारे समाज के अनुसाशन और सत्ता के पर्याय बन गए l इनके संचालन के लिए सामाजिक और देश के कानून बने, पर अपनी सहूलियत के हमने एक सामाजिक दृष्टिकोण अपनाया और व्यवस्थाएं अपने अनुरूप गढ़ी l रीति-रिवाजों और परम्पराओं के निर्भाव के लिए आचार संहिता भी बनाई l पर समय के साथ सामाजिक तंत्र के चरमराने से समाज में प्रतिबद्धता की कमी देखने को मिली, जिसे समस्यायें उत्पन्न होती चली गयी l इस समय प्री वेडिंग फोटोशूट एक समस्या बनाने की कागर पर, जिस पर विवेचना होनी चाहिये l  

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