Friday, May 11, 2018


असमंजस में आम आदमी
इस वक्त देश एक कठिन दौर से गुजर रहा है, देशवासी असमंजस में है l कभी उन्हें लगता है कि सब कुछ अच्छा हो रहा है, तो कभी स्थितियां बेहद गंभीर दिखाई देती है l सरकारी दावों की तरफ देखें, तो पायेंगे कि देश में निति आयोग जैसी सर्वाधिकार वाली संस्था है जो हर वर्ष राज्यों को विभिन्न मदों में पहले से ज्यादा धन आवंटन करती है, आम आदमी की सुरक्षा के लिए बनाये हुए कल्याण कोष में में हर वर्ष ना जाने कितने करोड़ रूपये आबंटित किये जातें है, हर गावं में बिजली पहुचने का दावा प्रधानमंत्री कर रहें है l उन्नत चिकित्सा के लिए नए हॉस्पिटल, मुफ्त पैथोलोजी और रेडियोलोजी जांच, इत्यादि की घोषणा l लगभग हर क्षेत्र में सरकारी घोषणा लगातार रहती है l इसमें कोई दो राय नहीं है कि देश के आर्थिक हालात पहले से ज्यादा सुधरें है l भविष्य निधि(पीएफ) में पहले से ज्यादा लोगों ने अपना पंजीकरण करवाया है l विदेशी मुद्रा कोष लगातार बढ़ रहा है l दूरसंचार के क्षेत्र में बेहताशा बृद्धि हुई है l सरकार और आम जनता में एक नजदीकी सी देखने को मिल रही है l सरकारी अधिकारीयों और आम जनता के बीच एक संवाद का वातावरण पिछले पांच वर्षो में बना है, जिससे सरकार की मंशा का पता चल रहा है l उज्वला योजना, दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना, अटल पेंशन योजना, दुर्घटना बिमा योजना, इत्यादि सैकड़ों योजनायें इस समय आम आदमी के लिए लांच की गयी है, जिसका फायदा लोगों की मिल रहा है l फिर भी आम आदमी असमंजस में होने के कई कारण सामने देखने को मिल रहें है, एक तो देश देश में एक नई कर प्रणाली, जीएसटी, के आने से लोगों को कुछ समझ नहीं आ रहा है, दूसरा, कच्चे तेल की अंतराष्ट्रीय कीमतें बढ़ जाने से एकाएक देश में लोहा और अन्य कई मेटालों और उनसे जुडी हुई कई वस्तुओं के भाव बढ़ गए, तीसरा, रूपया एकाएक निचले स्तर पर आ गया, जिससे कारोबारियों में खलबली मच गयी है l इधर सामाजिक फ्रंट पर अगर देखें तब पाएंगे कि लोगों के जीवन से चैन  जा रहा है l एक अनंत यात्रा के सहभागी बन गए है, लोग, जिसका कोई थोर नहीं दिखाई दे रहा है l रोजाना, मानो एक परीक्षा में बैठना पड़ता हो, l देश में हो रही लगातार बलात्कार और योन शोषण की घटनाएँ इस बात की और इशारा कर रही है कि हम एक अनियंत्रित यात्रा की और अग्रसर है, जिसमे हमारा व्यवहार पसान युग के मानव सा लग रहा है l ऐसा भी नहीं है कि कुछ सकारात्मक नहीं घट रहा है l 2014 में देश में नई भाजपा सरकार आने के पश्चात लोगों में इस बात का संतोष था कि देश में जीने के कुछ अच्छे हालात पैदा होंगे, और हुए भी l देश में पिछले चार वर्षों में एक भी बड़ा जन आन्दोलन नहीं हुवा है l औपचारिक और अनौपचारिक रूप से l पर व्यतिगत और राजनैतिक विचारों के द्वंद्व ने देश के नागरिक को अकेला और उपेक्षित सा खड़ा कर दिया है l रोजाना एक नया विचार और नई बात, किसी को भी असमंजस में डाल सकता है l अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का अतिक्रमण, नकारात्मक व्यक्तियों का प्रकट होना, शिक्षा, संस्कार और सांस्कृतिक क्रांति की सफलता को निजी अहं, विश्व पूंजीवाद-उपभोक्ताकरण और पश्चात्याकरण, जैसी स्थितयां आम आदमी को भ्रमित करने के लिए काफी है l  

राजनीति निम्न दर्जे पर जाने के पश्चात, इस समय एक संक्रमण काल से देश गुजर रहा है l आधा-अधुरा सा विकास l कभी पश्चिम की तर्ज पर तो कभी स्वदेशी मॉडल l 4जी में तो हमने प्रवेश कर लिया है, पर अगर गुणवत्ता की और देंखे तब पायेंगे कि अभी भी शहरों में लोगों को खासी परेशानी हो रही है l लोगों ने दुबारा लैंडलाइन का सहारा ले लिया है l फिर भी देश के लोगों ने सक्रत्मकता को अपना हथियार बना लिया है, अल्बर्ट आइन्स्टाइन की तरह, जिन्हें बचपन में पढने के तकलीफ थी, स्कूलों से कई दफा निकले गए, कॉलेज के दाखिला परीक्षा में वे फेल हो गए थे l पर लगन के पक्के थे, विज्ञान की उन गुत्थियों को सुलझाया, जिसे समझ पाना मुश्किल था l मेजर ध्यानचंद, जिनके जीवन में हॉकी का नामोनिशान नहीं था, पर जब सेना में भर्ती हुए, तब उन्होंने एक खेल चुनने के तहत हॉकी चुनी, और फिर जुट गए अभ्यास में और फिर नतीजा हम सभी के सामने है l  इस समय भारत भी एक स्वर्णिम युग के प्रारंभिक दौर में चल रहा है l आशा और निराशा दोने के साथ l चुनौतियाँ मुँह बाये खड़ी है, जिजीविषा और अदम्य साहस के साथ क्षुद्र और मंझले दर्जे के व्यापारी अपने काम को अंजाम दे कर देश के विकास में अपना योगदान दे रहें है l उसके हाथों को मजबूत करने की जरुरत है l उल्लेखनीय है कि 2010-12 की वैश्विक मंदी के दौर में भी भारत अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूती से बनाये रखने में सक्षम रहा l इसका मुख्य कारण था,भारत के छोटें और मंझले व्यापारी, जिन्होंने असंगठित मार्किट में स्थिरता बनाये रखी l
हम भारतीय मूलतः एक डरी हुई कौम है l हम शक्ति, सम्पदा सभी कुछ चाहतें है, स्टीवे जॉब्स और मार्क जुकेर्बेर्ग बनाना चाहतें है l पर किसी अनजाने डर से हम किसी के सामने भी अपने शक्ति दिखाने में डरतें है l इसलिए हम असमंजस में है l कभी प्राचीनता को अपनातें है तो कभी आधुनिक बनतें है l इस प्रपंच से निकल कर यथार्थ में चलना होगा, तभी हमारा कल्याण संभव है l इस शान्ति श्लोक का साथ अपनी बात ख़त्म करता हूँ –सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।
ऊँ शांतिः शांतिः शांतिः (अर्थ - "सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।")
          

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