खेल कूद में भारत का उत्कृष्ट प्रदर्शन संभव हैं
राष्ट्रमंडल खेलों
में जिस तरह का प्रदर्शन भारत ने दिखाया है, उससे तो यही लग रहा है कि आने वाले
दिनों में भारत खेल की दुनिया में अपना परचम लहरा सकेगा l जिस भारत को कभी एक अदद
पदक के लिए जूझना पड़ता था, वह 4 अप्रैल से 15 अप्रैल तक आस्ट्रेलिया में संपन्न
हुए 21 वें राष्ट्रमंडल खेलों में कुल पदक तालिका में 66 पदकों के साथ, तीसरे
स्थान पर रहा l खेल जगत के दिग्गज माने जाने वालें कनाडा जैसे राष्ट्र को पछाड़ कर उसने
26 स्वर्ण पदक हासिल किया है l इस एतिहासिक जीत से भारत में खेलों को एक नया उछाल
तो मिल सकेगा ही, साथ ही में खेल प्राधिकरणों को भारत में विभिन्न खेलों की
ट्रेनिंग और आधारभुत संरचना नए रूप से स्थापित करने का मौका मिलेगा l कुश्ती,
निशानेबाज़ी, बॉक्सिंग और बैडमिंटन कुछ ऐसी स्पर्धाएं है, जिसमें सबसे अधिक पदक
भारतीय खिलाडियों ने दिलवाएं l जिन खेलों में भारतीय खिलाडियों को नैसर्गिक कला
हासिल थी, उन स्पर्धाओं में खिलाडियों ने आसनी से पदक हासिल कर लिया l ऐसा प्रतीत
हो रहा है कि भारत में खेलें जाने वालें परंपरागत खेलों में भारतीय खिलाडियों को
एक ऐसा हुनर हासिल है कि वे दुनिया भर के तेज धावकों को पीछे छोड़ सकतें है l गौरतलब
है कि प्राचीन भारत में क्षत्रियों को शारीरिक विकास के लिए रथ दौड़, धनुर्विद्या, तलवारबाजी, घुड़सवारी, मल्ल-युद्ध, कुश्ती, तैराकी, भाला फेंक, आखेट आदि का प्रशिक्षण दिया जाता था। इसके अलावा
अन्य वर्ग भी बैलगाड़ियों और दक्षिण में नौका की दौड़ में भाग लेते थे। हड़प्पा
तथा मोहनजोदड़ो के अवशेषों से ज्ञात होता है कि ईसा से 2500-1550 वर्ष पूर्व
सिन्धु घाटी सभ्यता में कई प्रकार के अस्त्र-शस्त्र और खेल के उपकरण प्रयोग किए
जाते थे l छिपाछई, पिद्दू, चर-भर, चक-चक चालनी, दड़ी दोटा, गो, किकली (रस्सीकूद), मुर्ग युद्ध, बटेर युद्ध, गोल-गोलधानी, सितौलिया, अंटी-कंचे, पकड़मपाटी आदि
सैकड़ों खेल हैं,जिनमें से कुछ का अब अंग्रेजीकरण कर दिया गया है। इनके अब कुछ अलग
से अंग्रेजी नाम है, जिनकी प्रतिस्पर्धाएं अब अंतराष्ट्रीय स्तर पर होती है l कुछ
खेलों को रद्दो-बदल करके एक नया रूप दिया गया है l घुड़सवारी, नौकाचालन, भला-फैक,
शतरंज, कुश्ती, निशानेबाजी, आदि खेलों में भारत के लोगों को निपुणता तो हासिल थी ही,
साथ ही अगर हम यह कहें कि इनका जन्म भारत में हुवा है, तब कोई अतिश्योक्ति नहीं
होगी l प्राचीन भारत में शारीरिक श्रम की प्रतिष्ठा थी, जिसके बल बुत पर भारत में
उन खेलों को महत्त्व दिया जाता था, जिसमे शारीरिक कष्ट और श्रम होता था l कुश्ती
एक ऐसा खेल था, जिसमे भारत को सदियों से महारत हासिल थी l इसमें भारत के नामी
पहलवानों ने काफी नाम किया था l पर नए नियमों और एस्ट्रो टर्फ पर भारतीय खिलाडियों
को खेलने नहीं आने की वजह से धीरे-धीरे भारतीय खिलाडी पिछड़ते चले गए l मणिपुर की
तीन महिला खिलाडियों ने बॉक्सिंग और वेटलिफ्टिंग में स्वर्ण पदक झटक लिया है l
मणिपुर की महिला खिलाडियों के पास बॉक्सिंग और वेटलिफ्टिंग में नैसर्गिक हुनर
प्राप्त है, जिसे उन्होंने प्रदर्शित किया है l थांग-टा तथा सारित-साराक मणिपुर
में प्रचलित प्रसिद्ध युद्ध कलाएँ हैं। मणिपुर की युद्ध कला थांग-टा मणिपुर की अति
प्राचीन मार्शल आर्ट ‘हुएन लाल्लोंग’ का परिष्कृत रूप है।
छीबी गद-गा मणिपुर में प्रचलित प्रसिद्ध युद्धकौशल है। इसमें विजय प्राप्त करने के
लिये शारीरिक बल की अपेक्षा कौशल महत्त्वपूर्ण होता है। खोंग खांजोई तथा लामजेई
मणिपुर का एक अन्य प्रसिद्ध खेल हैं। मल्लखंभ जमीन से लगभग 9 पफीट की उफँचाई पर
लकड़ी के खंभे पर खेला जाने वाला खेल है। वहां के लोगों ने इन्ही खेलों को खेल कर
अपने शरीर की बनावट तो संजोया है l इसी तरह तीरंदाजी, चक्काफेक, भाला फैक, कुश्ती
जैसे खेलों में युगों से भारत में निपुणता हासिल है, जिसके लिए अगर आधारभूत संरचना
बनाई जाये, तब भारत खेल जगत का सिरमौर बन सकता है l मनुष्य के व्यक्तित्व के
चहुँमुखी विकास में खेल-कूद की महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है। इनसे मनोरंजन तो होता
ही है, शारीरिक क्षमता भी
बढ़ती है। खेलों से स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना उत्पन्न होती हैं जो समाज को
जोड़ने में अपनी भूमिका निभाते हैं। खेल-कूद में उत्कृष्ट उपलब्धियों से राष्ट्र
का सम्मान व प्रतिष्ठा बढ़ती है, लेकिन पुराने जमाने के खेल-कूद से अलग, आज के खेल अत्यंत प्रतिस्पर्धा वाले बन गये हैं।
1920 के दशक में प्रचलित हुआ ‘मार्शल
आर्ट’ शब्द मुख्य रूप से एशिया में प्रचलित युद्ध के तरीकों
तथा पूर्वी एशिया में जन्मे युद्ध के तरीकों के संदर्भ में था। मार्शल आर्ट को
विज्ञान एवं कला, दोनों का मिश्रित रूप माना जाता है। केरल
में प्रचलित प्रसि( मार्शल आर्ट ‘कलारिपयट्टू’ को प्राचीन समय में वन्य-जीवों से अपनी रक्षा के लिये सीखा जाता था। कलारिपयट्टू
के बहुत सारे लय एवं आसन जानवरों की मुद्रा एवं उनकी ताकत से प्रेरित हैं तथा उसके
नाम भी उसी पर आधारित हैं। केरल के इस मार्शल आर्ट को विश्व का सर्वाधिक प्राचीन
एवं सबसे वैज्ञानिक रूप माना जाता है। कलारिपयट्टू युद्धकला का प्रभाव भारतीय
शास्त्राीय नृत्य कथकली में भी दिखाई देता है। ठोडा हिमाचल प्रदेश की प्रसिद्ध
युद्ध कला है, जिसमें धनुष-बाण का
प्रयोग होता है। गतका पंजाब के निहंग समुदाय के बीच प्रचलित युद्धकला है, जिसमें खिलाड़ी एक-दूसरे पर वार तथा बचाव करके
अपने कौशल का प्रदर्शन करते हैं। ‘मर्दानी’
महाराष्ट्र का परंपरागत युद्ध कौशल है, जिसका
विकास 15-16वीं शताब्दी में मराठा शासन के दौरान हुआ। पारीकदा युद्ध कला पश्चिम
बंगाल एवं बिहार में प्रचलित है। इस युद्धकला की गतियाँ पशु-पक्षियों की गतियों पर
आधारित होती हैं। कथी सामू तथा पाईका अखाड़ा युद्ध(कला क्रमशः आंध्र प्रदेश एवं
ओडिशा में प्रचलित है।अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में निवास करने वाली निकोबारी
जनजाति के बीच दो प्रकार के खेल प्रचलित हैं- असोल आप और असोल ताले आप। निकोबार
में होने वाली परंपरागत कुश्ती को किरिप कहा जाता है। सालदू भी यहाँ प्रचलित एक
अन्य प्रकार की कुश्ती है। धोपखेल असम में रंगोली बिहू के अवसर पर खेला जाने वाला
एक प्रसिद्ध खेल है, जिसमें 11-11 खिलाडि़यों की एक-एक टीम
खुले मैदान में आसमान में उछाली गई गेंद को पकड़ने का प्रयास करते हैं। वल्लमकली
केरल में प्रचलित प्रसिद्ध सर्प-नौका दौड़ है, जो ओणमके अवसर
पर आयोजित की जाती है। हियांग तन्नाबा मणिपुर में प्रचलित प्रसिद्ध( नौका दौड़
संबंधी खेल है, जो लाई हराओबा उत्सव के अवसर पर आयोजित की
जाती है। इन्सुकनावर मिजोरम में डंडे से खेला जाने वाला एक प्रसिद्ध खेल है,
जिसमें सिर्फ पुरुष ही भाग लेते हैं। इस तरह से भारत के विभिन्न राज्यों
में परंपरागत रूप से खेले जाने वाले खेल और कलाओं को अगर आधुनिक रूप दिया जाता है,
तब उसका सीधा असर हमारे खेल की गुणवत्ता पर पड़ेगा l ख़ुशी का विषय है कि असम ने
अपने यहाँ खेले जाने वाले परम्परगत खेलों को बढ़ावा देने के लिए आयोजन भी शुरू कर
दिया है l आधुनिक उपकरणों, बुनियादी ढाँचे और परिष्कृष्ट वैज्ञानिक सहायता से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर
खेल-कूद परिदृश्य पूरी तरह से बदल गया है। अत्याधुनिक खेल उपकरणों, बुनियादी ढाँचे और वैज्ञानिक सहायता की बढ़ती
माँग को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने कई क़दम तो उठाये हैं, पर सरकारी
लालफीताशाही और राजनीति ने सब कुछ गड़बड़ कर दिया है l अब वह समय आ गया है कि भारत
अपने हुनर को पहचाने और देश के सभी भागों में खेल के बढ़ावे के लिए आधारभूत ढांचा
तैयार करे, जिसे आने वाले दिनों में हम सबसे अधिक स्वर्ण प्राप्त कर सकें l
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