Wednesday, October 11, 2017

आखिर किस मुकाम पर पंहुचा है, भारत

इस समय देश एक कठिन परीक्षा से गुजर रहा है l देश बदलता हुवा, इठलाता हुवा और अपने रंग दिखलाता हुवा, कुछ नया करने को तत्पर है l अगर गौर से देखा जाये, तब पाएंगे कि भारत में हर चीज की आपार संभावनाएं है l एक श्रेष्ठ राष्ट्र के रूप में यह देश रूपांतरित हो सकता है, जिसके लिए एक राजनैतिक इच्छाशक्ति की बस आवश्यकता है l बाकी कार्य यहाँ अपने आप हो जायेंगे l एक गरिमामय देश को बनाने के लिए जिस तैयारी की आवश्यकता है, वह अभी दिखाई नहीं पड़ रही है l इसके लिए कड़ी मेहनत और दृढ इच्छा शक्ति की आवश्यकता होगी l जिन आपार संभावनाओं की बात हम कर रहें है, उनको यथार्थ में बदलने का अब समय आ गया है l जिन वस्तु स्थितियों से देश के लोग अनिविज्ञ है, उससे परिचय करवाने की जिम्मेवारी उन लोगों की है, जो देश के शीर्ष स्थान पर बैठे है l मसलन देश का हर जिला, क़स्बा और गावं के सफल संचालन के लिए एक मजबूत तंत्र बना हुवा है, जिसमे कलेक्टर, एसडियो, बीडीओ और गावं के मुखिया जैसे लोग सबसे पहले आतें है l इन लोगों को अपने इलाके की समस्याओं के समाधान और विकास की जिम्मेवारी है l पर खेद है कि ज्यादातर अधिकारी या तो मीटिंग में व्यत रहतें है, या फिर नेताओं के अगवानी करतें हुए अपना समय नष्ट करतें है l ऐसे में आम जनता के लिए समय अगर है भी, तब वह मात्र एक दिखावा साबित होता है l लोगों की समस्याओं को सुनने का समय तक नहीं है, ऐसे लोगों के पास l समस्या की जड़ में जाना तो दूर, उस पर विवेचना तक नहीं की जाती l फिर भी कुछ लोग कहतें है कि इतिहास गवाह है कि जब जब भी देश पर संकट आया, देश में व्याप्त सभ्यता और संस्कृति से बनी एक जीवन शैली ने देश वासियों के मन में एक नई अलख जगा दी, जिससे, देशवासियों को एक नई राह दिखाई दी है l धार्मिक विभेद और विभिन्न अंधविश्वासों से मुक्ति, जैसे प्रश्न हमेशा से देश के लोगों को चुभते रहें है l कुछ मिथकीय गाथाओं ने आग में घी का सा काम किया l कुछ हमारे नेताओं ने अपने राजनैतिक स्वार्थ सिद्धि के लिए मानसिक जड़ता की कठिन बेड़ियाँ लोगों को पहना दी, जिससे देश की आत्मा देश से अलग हो गयी, और एक निर्जीव सा पश्चिम का अनुशरण करने वाला देश हो चला था, भारत l वर्षों से जो प्राचीन सभ्यता, यहाँ पर जन्मी और पली-बड़ी हुई, उसके गुणों को अगर हम आत्मसात करने की कौशिश करें, तब पाएंगे कि देश की गर्भ में वह तत्व छिपा है, जिसको पाने के लिए किसी डिग्री की आवश्यकता नहीं है l पर हम जिस चीज का अनुशरण करने लगे, और जो फल हमें मिला है, वह किसी निर्जीव वस्तु की तरह है, जिसमे चाभी डाल कर चलाया जा सकता है l भारतीय राजनीति अर्थ की और अग्रसित होती चली गयी और सामाजिकता मात्र एक ढकोसला बन कर रह गया है l इस समय देश में हजारों ऐसी योजनायें चल रही है, जिसके बारे में सटीक जानकारी उन लगों को भी नहीं है, जो इन योजनाओं से सही मायने में लाभार्थी हो सकते है l बस रोजाना के योजना की घोषणा l जिन लोगों को योजनाओं के बारे में सविस्तार से बताने की जिम्मेवारी है, वें अभी भी सामंतों का सा व्यवहार करतें है, मानो अपनी पाकेट से कुछ निकाल कर दे रहें है l  
गरीब और भोले-भले लोग कुछ पाने की चाह में उन लोगों को सलाम मारते हुए चलते रहते है l देश इसलिए भी एक कठिन परीक्षा से गुजर रहा है कि वामपंथी और दक्षिण पंथियों के बीच जबरदस्त विवाद है, हर उस चीज का, जो इस समय दक्षिण पंथी करना चाहतें है l दरअसल में, सिर्फ वामपंथी ही नहीं, कुछ सेक्युलर किस्म के लोगों को भी इस समय देश में अड़चने डालने की चेष्टा की है l अब तो कुछ लोगों की मनोवृत्तिया ऐसी बन गयी है कि बस विरोध करों और एक कारागार हो सकने वाले वाकये को हथियार बना कर आलोचना कर डालो l मुझे याद है, जब देश में हज़ार और पांच सो के नोटों को संसद में उछाला जाने लगा, तब लोग कहतें थे, कि बड़े नोटों को बंद देना चाहिये, जिससे काला धन अपने आप समाप्त हो जायेगा, और देश इस काल सर्प से मुक्त हो जायेगा l नरेंद्र मोदी सरकार ने यही किया, पर जिन लोगों को पहले से पतली गलियों के रास्ते मालूम थे, उन्होंने जरुरत से ज्यादा नोट वापस सिस्टम में डाल दिए, जिसे ऐसा लगने लगा कि नोट बंदी की योजना फ़ैल हो गयी है l पर हम सभी को पता है कि यह योजना कितनी कारगार होने वाली है l जैसे पुराने कपड़े के बदलने पर कोई भी एकदम फ्रेश अनुभव करता है, बिलकुल उसी तरह से l उपर से जीएसटी के आने से देश में मानों लोगों ने खुले दिल से स्वागत किया है, खास करके उद्योग सेक्टर ने l पर जीएसटी के पेचीदगियों ने लोगों का जीना दुश्वार किया हुवा है, जिससे यह लगने लगा है कि जीएसटी एक बेकार कानून है l विरोधियों को एक बार दुबारा से मौका मिल गया है l इकोनोमी स्लो हो गयी है, छोटें व्यापारी भूखे मर रहें है, इत्यादी, इत्यादि, इल्जाम सरकार पर है l जिस जीएसटी को लेकर इतना बवाल इस समय देश में मचा हुवा है, वह निसंदेह एक कारगार कानून है, जिसमे भाग लेकर राज्य सरकारों और केंद्र, दोनों को भारी फायदा होने वाला है, खास करके उपभोक्ता राज्यों को, उस जीएसटी के क्र्यान्वयन के लिए सरकार लगातार प्रयासरत है l आम लोगों की मांग पर उसमे व्यापक बदलाव भी किये जा रहें है l
इन सभी के बीच, नई चुनौतियाँ हमारे सामने उभर कर आई है l आंतरिक सुरक्षा, नक्सलवाद जैसे पुराने मुद्दे तो ठन्डे बसते में पड़े ही है, साथ ही, भारत चीन रिश्तों में आ रही खटास, अवेध रोहिंग्याओं को शरण और वर्षों से रह रहें बांग्लादेशियों ने देश भर के लोगों का ध्यान आकर्षित किया है l वामपंथियों और दक्षिणपंथियो के बीच इन मुद्दों पर भी जबरदस्त विवाद है l जैसे कोई देश सतत युद्ध कर रहा हो, चीन और पाकिस्तान लगातार हमें परशान कर रहें है l अब समय सबह सुबह व्हात्सप पर सुविचार प्रेषित करने का नहीं, बल्कि टूटी हुई डोर को दुबारा जोड़ने का प्रयास करने का समय आ गया है l जो लोग झूठी ख़बरें प्रसारित करतें है, उनको प्रोत्साहन तो बिलकुल नहीं दिया जाना चाहिये l प्रेरित करने वाला गीत,‘मन में विश्वास, पूरा है विश्वास, हम होंगे कामयाब एक दिन’ को बुद्बुताते हुए आज का प्रसंग समाप्त करता हूँ l    

   

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