Sunday, September 3, 2017

जब शासन हमें निराश करता है
रवि अजितसरिया

भारत एक लोकतांत्रिक देश है l यहाँ जनता हर पांच वर्षों में एक नई सरकार को चुनती है l चुनी हुई सरकार संविधान में वर्णित और जनता को प्रदत अधिकारों के क्रियान्वयन के लिए, जिसमे जानमाल की सुरक्षा, रोजगार और आम लोगों के हितों की रक्षा करने का वचन मुख्य रूप से रहता है, सत्ता सँभालने के समय शपथ लेती है l यह क्रिया पिछले सत्तर वर्षों से आजाद भारत में चल रही है l भारत की जीवनधारा को सँभालने के लिए, नौकरशाहों की एक बड़ी फौज देश के कौने-कौने में कार्यरत है l देश में कानून और न्याय का राज हो, इसके लिए देश में एक पूरी व्यवस्था बनी हुई है, जो देश के हर नागरिक को शासन के प्रति आस्था का अनुभव करवाता है l पिछले कुछ वर्षों में देश में विद्वेष, विरोध और टांग खिंचाई की राजनीति और सत्ताधारियों में आपस में संघर्ष ने आम आदमी का ना सिर्फ विश्वास तोडा है, बल्कि उसका उन तमाम चीजों से विश्वास उठाने लगा है, जिन्हें वह लोकतंत्र का स्तम्भ मानता था l जब देश आजाद हुवा था, तब अंग्रेजों ने कठाक्ष किया था कि देश लुटेरों के हाथों में चला जायेगा और चारो और अरज़कता फ़ैल जाएगी l देश आज आज़ादी के सत्तर वर्षों बाद भी एक अराजक स्थिति में है l चारों और अविश्वास, अशांति, आरोप, प्रत्यारोप l कौन किस पर विश्वास करे l शासन में रहने वाले लोगों को हम सरकार कहतें है l उनके प्रति कृत्यों को हम सूक्षमता से आंकलन करतें है l शासन के लोगों का आम लोगों के प्रति नजरिया, उनका तरीका और उनकी मांग, आम आदमी को प्रभावित करती है l मसलन एक सड़क टूटी हुई है, आम आदमी उसको ठीक करवाने के लिए मांग करता रहता है, फिर भी वर्षों तक सड़क ठीक नहीं होती है l एक दिन सड़क पर ठेकदार काम करने के लिए आतें है और घटिया सड़क बना कर चले जातें है, जो कुछ ही दिनों में दुबारा टूट जाती है l असम में जब तटबंध बने थे, तब यह आशा की जा रही थी कि इस बार कार्य अच्छा हुवा है, पर हाल ही में आई बाढ़ ने सभी तटबंधों को अपने में समा लिया है l जब शासन में बैठे लोग ही अपनी ड्यूटी ठीक से नहीं निभाते, तब आम आदमी तो बहकेगा ही l एक चुनी हुई सरकार के लिए क्या जिम्मेवारियां है, यह उसे बताने की आवश्यकता नहीं है, .. उसे पहले से ही पता है कि उसे क्या करना चाहिये l अभी दो दिनों पहले ही व्हात्सप पर एक विडियो वायरल हुवा था, जिसमे एक राज्य के मुख्यमंत्री ऐसे कई शिकायतकर्ताओं को फ़ोन कर रहें थे, जिन्होंने मुख्यमंत्री हेल्पलाइन पर शिकायत की थी l यह एक बड़ा जनसंपर्क अभियान था l अपने आप संपन्न होने वाली तमाम प्रशासनिक गतिविधियाँ, जिसमे शिकायतों का निबटारा, विकासमूलक कार्य, इत्यादि, मानों रुक सी गयी है, नहीं तो एक शिकायतकर्ता को मुख्यमंत्री तक शिकायत पहुचाने की जरुरत क्यों पड़ी l उनके नीचे बने हुए तंत्र, जब शिकायतकर्ताओं की शिकायतों का निबटारा करने में असक्षम रहतें है, तब आम आदमी के पाद मुख्यमंत्री के समक्ष गुहार लगाने के अलावा कोई और रास्ता नजर नहीं आता l कल्पना कीजिये कि त्रिपुरा में एक सड़क बनाने के लिए देश के प्रधानमंत्री को आधी रात को एक इंजीनियर को फ़ोन करना पड़ा था l  
रोजाना हजारों शिकायतें पीएमओ तक पहुचती है, क्योंकि लोगों को न्याय नहीं मिलता l राम रहीम के मामले में भी प्रशासन से भारी चुक हुई थी  जिसका खामियाजा आम आदमी को अपनी जान दे कर चुकाना पड़ा l हम भारतवासी एक ऐसे समाज का हिस्सा है, जहाँ अभी भी सामंतवादी ताकतें, हमें प्रभावित करती है l गली के एक छोटे से नेता भी अपने आप को आम आदमी से उपर समझतें है l समस्या तब और बढ़ जाती है, जब उन नेताओं के सरकारी काम आम आदमी से जल्दी निबट जातें है और वे अपने आप को सिस्टम का हिस्सा बताने लागतें है l यहाँ आ कर आम आदमी का सिस्टम से विश्वास उठने लगता है l सफल्र और धनवान, ताकतवर और प्रभावशाली, पार्टी इन पावर, मानों सिस्टम का हिस्सा बनकर आम आदमी को बोना बना देता है l ये सभी चीजें आम आदमी को प्रभावित करती है l परिवर्तन के नाम पर आने वाली सरकारें, जब अपनी समस्त उर्जा अपने आंतरिक मसलों को सुलझाने में लगा देगी, तब वह विकास के कार्यों में कहाँ ध्यान दे पाएगी l देश एक संक्रमण काल से गुजर रहा है l इस बीच के काल में बहुत कुछ उल्टा-पुल्टा होने की संभावनाएं है l जातिवाद और साम्प्रदायिकता की दुकानें चलाने वालों की दुकाने बंद करवाने की जरुरत है l अंधविश्वास की जड़े भारत में इतनी गहरी है कि उखाड़े नहीं उखड़ती है l हम भले ही आधुनिक पौशाक पहन कर नए ज़माने के बन जाये, पर हमारी सोच को कौन बदलेगा l हमारे शासकों में आम लोगों के प्रति जो सामंती नजरिया है, उसे कौन बदलेगा l वोट बैंक की राजनीति का संपोषण करने वाले नेता हमें बार-बार अठारवी सदी की और ले जाती है l आखिर आम जनता बार बार बलिदान क्यों दे l क्यों वह सिस्टम को बदलने के लिए आन्दोलन करता है l क्या आम आदमी का एक मात्र रोल हर पांच वर्षों में वोट देना ही है ?
देश में एक निर्णायक व्यवस्था अभी भी कायम है l न्यायलय, जिसके पास जाने के अलावा अब आम आदमी के पास कोई चारा नहीं है l राम रहीम के मामले में भी जब शासन व्यवस्था चरमरा गई थी, तब उच्च न्यायालय ने कानून व्यवस्था को लेकर हरियाणा सरकार को फटकार लगाईं थी l जब समस्त शक्तियां जनता में निहित है, तब फिर यह कैसा असंतोष , फिर यह कैसा रोना-पीटना l वर्तमान लोकतंत्र में सरकारी सिस्टम किस तरह कार्य करता है, देश के आम नागरिक पूरी तरह से समझ चुके है, पर दमघोंटू परिस्थितियों और बदले की तुच्छ राजनीति होने के कारण, आम जनता चुप रहने पर विवश है l अब यह देखना है कि  देश के अंतिम व्यक्ति को इज्जत से दो जून की रोटी कब नसीब होगी l  

   

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