इस पार प्रिये
मधु है, तुम हो, उस पार ना जाने क्या होगा
2020 की शुरुवात वन भोज और
भ्रमण से आमतोर पर होती है l इस दफे, 2021 एक नए कलेवर में दिखाई देगा l एक नयी
संस्कृति के साथ..कोरोना के साथ वाली संस्कृति, जिसको आत्मसात करने के अलावा, किसी
के पास कोई उपाय नहीं है l 2020 को पार करके ख़ुशी इस बात की है की कोरोना के संकट
से कुछ दुरी तो बनी, पर डर जो अभी भी बना हुवा है l खासकरके कोरोना के एक नए रूप
में आने के पश्चात, तनाव बरक़रार है l कोरोना वैक्सीन आने को है, पर इस बात में
संशय है कि किसे वैक्सीन प्राप्त होगी और किसे नहीं l असम में जहाँ 2021 में चुनाव
होने जा रहे हैं, यह माना जा रहा है कि वैक्सीन असम में सबसे पहले आएगी, और सबसे
पहले 30 करोड़ लोगों को वैक्सीन प्राप्त होगी l पर तमाम तरह की अटकलों के बीच
कमोवेश हर तरह के आयोजन और जरुरी कार्य निबटाये ही जा रहे हैं l जैसे कि मन को खुश
रखने के लिए जितने भी जतन करे, वें सभी जनवरी माह के प्रथम हफ्ते तक शेष हो जाते
हैं l एक बार गणतंत्र दिवस गया नहीं कि मनुष्य वापस अपने पुराने रूप में आ जाता
हैं l इस पार-उस पार की एक बड़ी समीक्षा इस समय चल रही है l ब्रह्मपुत्र घाटी और
बराक घाटी के बीच l दो सिरे है, राजनीति के l सभी नजरे, बराक की और टिकी है, जिसका
एक अन्य सिरा कही ना कही बंगाल से भी जुड़ा हुवा है, सिरा नहीं तो, तार तो अवश्य है
l करीमगंज में कुछ आयोजन होता है, तो उसका प्रभाव बंगाल में पड़ना निश्चित है l इस
समय दिल्ली-हरियाणा सीमा पर चल रहे किसान आन्दोलन ने दिल्ली की सत्ता को हिला कर
रख दिया है l यह भी इस पर और उस पार की लड़ाई बन गयी है l बर्फ जमा देने वाली ठंडी
हवा के बीच किसानों ने आन्दोलन को जरी रख कर पूरी दुनिया में एक मिसाल कायम कर दी
हैं l नमक आन्दोलन, असहयोग आंदोलन और असम आंदोलन, कुछ ऐसे आन्दोलन देश में पूर्व
में हुए है, जिससे सत्ता हिल गयी थी l किसानों ने इस बार नए साल का कोई जश्न नहीं
मनाया l प्रख्यात कवि हरिवंश राय बच्चन ने एक कविता लिखी थी, जिसका शीर्षक है, ‘इस
पार उस पार’ l उनकी इस लम्बी कविता में जीवन के तमाम उतार चढाव के आयाम छिपे हुए
है l शायद ही कभी कोई लिख सकता है कि इस पार प्रिये मधु है, तुम हो, उस पार ना
जाने क्या होगा l कभी ऐसा लगता है कि यह
एक प्रेम रस की कविता है, या जीवन की सच्चाई नापती हुई, साहस,संघर्ष, जिजीविषा की
कविता है l कभी यूँ प्रतीत होता है कि यह एक निराशा भरी कविता है, जो जोश में में
लिखी गयी हो l यह किस रस को प्रतिपादित करती है, इस पर कोई शीर्ष नतीजे पर नहीं
पहुच सकता है, अपर से विचित्रता और विशेषता से भरी यह कविता ऐसे संकेत देती है,
जिस पर एक बार ठिठक आकर आत्ममंथन करना जरुरी हो जाता है l मजहब, पोथियाँ, सब
बेकार..उस पार न जाने क्या है l पंडित-मौलवियों और पादरियों की तकरीरों को दर
किनारे रखते हुए, सिर्फ प्रारब्ध का जिक्र किया गया है l फिर जैसे जैसे कविता को
आगे कोई पढता है, जिन्दगी के फलसफे से रूबरू होता चला जाता है l 2020 के कठिनतम दौर
से गुजरने के पश्चात, अब मानव इस नतीजे पर पंहुचा है कि बड़े से बड़ा प्रकृति के आगे
झुक जाता है, और प्रणाम करने लगता है l कोविड काल में भी यही हुवा l एक जगह वे
लिखते है रविशशिपोषित पृथ्वी कितने दिन खैर मनाएगी...तब तेरा नन्हा सा संसार का
क्या होगा l कल्पना के घोड़े कितने दौड़ सकते है, इसका उदहारण हरिवंश राय बच्चन की
अन्य कविताओं में भी देखा जा सकता हैं l कुछ आलोचकों ने इसे विरह का गीत करार दिया
हैं l
असम में क्षेत्रीय रंग वाली
कुछ नई पार्टियों ने पिछले दिनों जन्म लिया है l सत्ता के मोह में नई राजनीतिक
पार्टियों का जन्म लेना, इस बात के सबूत है कि चुनाव में कई तरफ़ा प्रतिद्वंद्विता
होने वाली हैं l चुनाव के समय अक्सर होता है, जिसका असर होता भी है और नहीं भी l नागरिकता
संसोधन कानून का विरोध करते करते कुछ युवाओं ने पार्टियाँ गठित कर ली है और सत्ता
को चुनौती देने का मन बना लिया हैं l समय आत्ममंथन का है, जिसको सभी को अपने विवेक
का इस्तेमाल करके समझना होगा l असम समझोते की दफा 6 को क्रियान्वयन के लिए गठित
कमिटी ने अपनी रिपोर्ट सरकार को दे दी है, जिस पर चर्चा होनी अभी बाकी है l वर्ष 2021
वर्ष असम के लिए एक महत्वपूर्ण वर्ष साबित होने वाला है l एक आर पार की लड़ाई जो
होनी है l
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