Saturday, August 29, 2020

उसका असम के प्रति सरोकार बढ़ा है

 

उसका असम के प्रति सरोकार बढ़ा है 

असम में दरअसल में कितने हिंदी भाषी है, इसकी सटीक वैज्ञानिक संख्या अभी तक किसी के पास नहीं है l आंकड़े है, पर प्रमाणिकता नहीं है l हिंदी भाषियों की संख्या को लेकर कईयों ने शंका व्यक्त की है कि 2011 के मनुष्यगणन के हिसाब से असम में उनकी संख्या जनसँख्या का 6.73 प्रतिशत है l 2011 की जनगणना के अनुसार असम की कुल जनसँख्या 3.12 करोड़ है, जिसके हिसाब से राज्य में हिंदी भाषियों की जनसँख्या करीब 20 लाख होती है l मैंने जब जनगणना के आंकड़ों को खंगालना शुरू किया तब पाया कि जनगणना के भाषा खंड के तृतीय अध्याय में यह दर्शाया गया है कि असम में प्रति 10000 लोगों में हिंदी भाषियों की संख्या 673 है, जबकि असमिया भाषियों की संख्या 4838 है l इसी तरह से असम में बंग्ला भाषियों की संख्या प्रति दस हज़ार 2892 और बोड़ो भाषियों की संख्या 454 हैं l इन तथ्यों से यह पता चलता है कि असम में मिश्रित भाषा-भाषी के लोग हमेशा से वास करते आयें है, जिसमे असमिया बोलने वाले लोग सर्वाधिक है l जब असम आन्दोलन शुरू हुवा, वह दौर एक असमिया पुनर्जागरण का दौर था l असम की भाषा और संस्कृति को जनसांख्यिकी में आये बदलाव से कैसे बचाया जाय, इसके उपर एक बड़ी चर्चा शुरू हो चुकी थी l खास करके पूर्व पाकिस्तान, बाद में बांग्लादेश, से आये नागरिकों ने सिर्फ सीमाओं पर ही नहीं, बल्कि असमिया मुख्य भूमि पर भी अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था l मतदाता सूची अवेध बंगादेशियों के नाम शामिल हो गए थे l उस समय के बहुत पहले से ही असम में बड़ी संख्या में हिंदी पट्टी के लोग भी रोजगार के लिए असम में आते-जाते रहते थे l दिल्ली की असम को लेकर नीतियों से भी यहाँ के लोग काफी नाराज थे l इसलिए सन 1979 में असम में एक बड़े आन्दोलन का सूत्रपात हुवा, जिसकी अगुवाई छात्र संगठन आसू ने की थी l कहने को तो यह एक छात्र आन्दोलन था, पर उसकी पैरवी यहाँ के बुद्धिजीवी और असम और असमिया भाषा से नाता रखनेवाले, जिसमे बड़ी संख्या में हिंदी भाषी लोग भी शामिल थे, करीब-करीब सभी कर रहे थें l असमिया पुनर्जागरण के इस आन्दोलन ने अपना असर दिखाया और सन 1985 में छात्र नेताओं द्वारा गठित की गई राजनितिक पार्टी असम गण परिषद् सत्ता में आई l क्षेत्रीयतावाद का परचम लिए, यह पार्टी असमिया लोगों के लिए असमिया भाषा, साहित्य और संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन करने का पर्याय मानने लगी थी l शायद असमिया इतिहास में इस तरह का वातावरण कभी भी नहीं बना था l कुछ लोग इस एक नया सवेरा का रहे थे l  

असम में रोजगार और व्यवसाय के कारणों से ही असम में हिंदी भाषियों के जमावड़ा नहीं हुवा है l दरअसल में असम में वैष्णव संस्कृति के प्रवर्तक श्रीमंत शंकरदेव के समय से ही हिंदी भाषियों का आना शुरू हो गया था l यह एक माइग्रेशन पैटर्न है, जो हर राज्यों और देशों के साथ लागु होता है l कई संस्कृतियाँ इसमें उजड़ी और कई नई बनी, कई बोलियाँ इतिहास के साथ गुम हो गई, नई बोलियाँ ने जन्म लिया l जैसे कुछ प्रवासी प्रक्षी प्रवास किये गए स्थान पर रुक जाते हैं उसी तरह कुछ लोग पहले से ही यहाँ रुक गए थे, जिन्हें हिंदी भाषी या बहिरागोत कहा जाता है l इनकी कुल  जनसँख्या बोड़ो भाषी लोगों से थोड़ी अधिक है, बोड़ो भाषियों ने, हम सभी को याद है, आन्दोलन करके पुरे देश में हंगामा खड़ा किया था, आज एक बड़ी राजनितिक शक्ति है, जो असम में सरकार बनाने में महत भूमिका निभातें है l हिंदी भाषियों ने कभी भी आन्दोलन का रुख नहीं अपनाया l सत्तारूढ़ पार्टियों से मित्रता करके अपना भरपूर सहयोग दिया है l पर सवाल उठता है कि जब असम समझोते की धारा 6 तो कभी भी गैर असमिया भाषी के निष्कासन की बात नहीं करती, फिर आज उन्ही लोगों के अधिकारों को सीमित करने और सांप्रदायिक वृक्ष बेल को दुबारा हरा करने का प्रयास क्यों किया जा रहा है ? इसको इस तरह से समझते है कि असम में जातिगत भावनाएं प्रबल रूप से हमेशा से ही चरम पर रही है l जरा सी चिंगारी देने की जरुरत है, बस उफान मारने लगती है l ‘का’ आन्दोलन के दौरान हम यह देख चुके है l असम में बड़े स्तर शांति के लौट आने से एक राष्ट्रीय पार्टी के शासन के दौरान, स्थानीय असमिया जाति से एक बड़ा तबका जातिगत भावना से उपर उठ कर राज्य और देशहित की बातें भी सोचने लगा है l शिक्षा और रोजगार को प्राथमिकता देने लगा है, जिससे देश भर में असमिया बच्चे शिक्षा प्राप्त और नौकरी करने लगे है l ऐसे बच्चों के अभिवावक यह सोचते है कि देश की मुख्यधारा में शामिल हो कर ही एक विकसित असम बनाया जा सकता है l

सन 2016 में हिंदी भाषियों ने असम की राजनीति में एक बड़ी भूमिका निभाई थी, इस में कोई दो राय नहीं है l आने वाले दिनों में भी वें दुबारा से असम की राजनीति में पहले से भी अधिक सक्रियता दिखायेंगे l इसका मुख्य कारण है कि हिंदी भाषियों का असम के प्रति सरोकार बढ़ा है l एक आम हिंदी भाषी असम के बारे में अधिक जानना चाहता है, अधिक असमिया हो कर यहाँ की भाषा, साहित्य और संस्कृति को आत्मसात करना चाहता है l यह वह इसलिए चाहता है क्योंकि विभिन्न भाषा-भाषी के लोगों के आपस में संवाद बढ़ा है l असमिया और हिंदी भाषियों में संपर्क, व्यवसाय और सामजिकता बढ़ी है, जिससे विश्वास का वातावर्ण दुबारा से दुरुस्त हो कर, एक नए परिपेक्ष्य में बनाना शुरू हो गया है l      

     

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