हिंदी का अपमान या असमिया
का
रवि अजितसरिया
पिछले दिनों असम में दो बड़ी
घटनाओं की चर्चा सर्वत्र रही, जिसको राष्ट्रिय मीडिया ने गौर देखा और विचार मंथन
भी किया l पहली थी, गुवाहाटी के नूनमाटी के बिहू उत्सव के दौरान असम के लोकप्रिय असमिया
गायक जुबिन गर्ग को हिंदी गीत गाने से रोका जाना और दूसरी इस घटना के ठीक तीन
दिनों बाद असम में संयुक्त हिंदी सलाहकार समिति की बैठक का होना और उस बैठक में
केन्द्रीय मंत्री एम् वन्कैया नायडू और असम के मुख्यमंत्री सर्वानन्द सोनोवाल
द्वारा एक साथ यह कहना कि देश के विकास के लिए राष्ट्रभाषा एक महत्वपूर्ण माध्यम
है l मुख्यमंत्री सर्वानन्द सोनोवाल ने सभी से हिंदी सिखने की अपील भी की है l दरअसल में हिंदी के राष्ट्रभाषा होने से
देश भर में हिंदी के विकास और उपयोग के लिए बनी समितियां और भाषा परिषदों ने आपने
काम ठीक से नहीं किये है l नहीं तो, हिंदी के साथ क्षेत्रीय भाषाओँ का भी ठीक उसी
तरह से विकास हो जाता, एक संयुक्त परिवार की तरह, जहाँ कम-ज्यादा जानने और करने
वालें, हर तरह के सदस्य, छोटे से बड़े हो जातें है, और अपनी राह पा ही लेतें है l
लेकिन स्थिति यह है कि देश के दक्षिण और पूर्व भाग में हिंदी के उपयोग को लेकर
भारी मतभेद है l एक तरफ स्थानीय भाषा का उपयोग और उसकी महत्ता, उसका जुड़ाव, माध्यम
और दूसरी और हिंदी एक संपर्क भाषा का होना l कितना विरोधाभास प्रतीत हो रहा है l
दरअसल में, हिंदी को जानने और पढने वालें लोगों को हमेशा से ही देश की अन्य भाषा
और उसके साहित्य के प्रति भी उतना ही अनुराग रहा है जितना की हिंदी के प्रति उनका
लगाव है, बस शर्त एक ही है कि देश कि प्रादेशिक भाषाओँ के साहित्य को हिंदी में
अनुवाद कर उसको राष्ट्रिय पटल पर रखा जाये, ताकि हिंदी पट्टी के लोग भी उस समृद्ध
भाषा की मिठास का अनुभव कर सकें l रविंद्रनाथ ठाकुर को अपनी रचनवाली ‘गीतांजलि’ के
लिए नोबेल पुरस्कार ही तो मिला था, जो उन्होंने बंगाली में ही तो लिखी थी l बाद
में उसका अनुवाद अंग्रेजी(मतभेद अलग करते हुए) और अन्य भाषा में हुवा, तब जा कर
पूरी दुनिया की नजर उस पर पड़ी l इस तरह से क्षेत्रीय भाषाओं को विश्व पटल पर ले
जाने के लिए उसका अनुवाद होना अत्यंत जरुरी है l हिंदी यह काम आसानी कर सकती है,
अनुवाद, पहचान और स्थापना, तीनों काम एक साथ l असम के मामले में अगर देंखे, तब
पाएंगे कि जिन्होंने ने भी राष्ट्रिय पटल पर ख्याति प्राप्त की है, उन्होंने,
हिंदी की और रुख किया और अपने असमिया गीतों को हिंदी में अनुवाद कर उनको राष्ट्र
के सामने पेश किया l सुधाकंठ भूपेन हजारिका एक अन्यतम उदारहण है, जिन्होंने अपने
गीतों को हिंदी में अनुवाद कर पुरे देश में अपना नाम किया l सुधाकंठ का गीत दिल हम
हम करें, आज भी लोग अनायास ही गुनगुना लेतें है l क्या इससे हमे आनंद की अनुभूति
नहीं होती ? जुबिन, अंगराग महंत जैसे गायकों का समूचे देश में एक सुनाम है,
जिन्होंने असमिया गीतों को असम की चाहरदीवारी से बाहर ले जा कर, एक अलग राग बनाई हैं
l उन्होंने लगभग हर भाषा में गीत गायें है l अंगराग के कोक स्टूडियो में गाये
हुए टुकारी गीतों को आज लोग
इतना पसंद कर रहें है कि उनकी मांग पुरे देश में है l हाल के बिहू का मौके पर
उन्होंने मुंबई में कई कार्यक्रमों में मुंबई के श्रोताओं का सामने असमिया गीतों की
झड़ी लगा दी, जिसे वहां उपस्थित जनता ने तालियाँ बजा कर, पेश किये हुए बिहू नृत्य
और गानों को सराहा l यह असमिया भाषा और गीत संगीत की जीत थी, उस गायक की विजय थी,
जिसने असमिया गीतों को बड़े मंच पर ले जार कर पुज्वाया l यहाँ एक बात और सिद्ध होती
है कि गीतों कि कोई भाषा नहीं होती l अगर गौर से पंजाबी गीतों की और देंखे, तब
पायेंगे कि उस भाषा और राग के गीतों की धुनें हमें देश के किसी भी कोने में हर कभी
सुनाई पड़ जाएगी l किसी भी समारोह में पंजाबी गीतों की मांग हमेशा रहती है l पंजाबी
गीतों पर युवा सबसे ज्यादा थिरकतें है l क्या इससे पंजाबी भाषा और अधिक मजबूत होती
नहीं दिखाई देती l हालाँकि इस बात पर मतभेद है कि जुबिन गर्ग ने जब करार किया था,
तब उसे तोडना नहीं चाहिए था l यात्रा वृतांत लेखक सांवरमल सांगनेरिया ने असमिया
वैष्णव धर्मगुरु श्रीमंत शंकरदेव को विश्व दरबार में पहुचाने का कार्य किया है l
ऊन्होने गुरु के उपर 450 पृष्ठ की एक पुस्तक हिंदी भाषा में लिख कर, सम्पूर्ण
भारतवर्ष को इस संत के बारे में बताया ही नहीं बल्कि इस पुस्तक के माध्यम से
असमिया जाति, संस्कृति और चरित्र का एक ठोस परिचय हिंदी पट्टी के लोगों के सामने
रखा है l इतना ही नहीं उनकी पुस्तक का मलयालम और मराठी अनुवाद भी हो चूका है l
उनकी इस पुस्तक पर मुंबई विश्वविद्यालय पर छात्र शोध कार्य कर रहें है l यह सब इसलिए
संभव हुवा, की उन्होंने असम को अपना कर्म क्षेत्र बनाया, नहीं तो वे भी मुंबई में
बड़े आराम से बस कर अभी तक राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार प्राप्त कर रहे होतें l पर
एक असमिया की भांति उन्होंने ज्योति प्रसाद अगरवाला के बारे में पुस्तक लिख कर
पुरे भारत वर्ष में इस सांस्कृतिक के बारे में विस्तार से बताया l मलयालम भाषा में
उनकी श्रीमंत शंकरदेव पर लिखी हुई पुस्तक का अनुवाद सिर्फ इसलिए हुवा क्योंकि देश
के इस महान संत के बारे में लोग जानना चाहते है l इस तरह से भारतवर्ष में अंगराग
और जुबीन आज जाने जातें है, तब उससे असम का नाम उज्जवल होता है, जिससे असमिया गीत
और संगीत को मान्यता प्राप्त होती है l इसमें कही भी दो राय नहीं है कि असम प्रदेश
में हिंदी बोलने और समझने वालों की तादाद बड़ी है, जिसका मुख्य कारण है, पिछले कई
वर्षों से असम का सर्वभारतीय मुख्यधारा में शामिल होकर एक अपनी पहचान बनाना l असम
के मुख्यमंत्री सर्वानन्द सोनोवाल और वित्त मंत्री हिमंत विश्व शर्मा का नाम पुरे
भारतवर्ष के लोगों की जबान पर है l यह इसलिए संभव हुवा कि असम उन रुढ़िवादी बेड़ियों
से निकल कर, एक नए क्षितिज पहुचने को आतुर है l यहाँ भाषा अब आड़े नहीं आयेगी l
असमिया सार्वभौमिकता की रक्षा करना, हर असमियावासी का नैतिक धर्म है, जिसके लिए
यहाँ कई आन्दोलन हुवें है l असमिया बिहू मंच पर अगर असमिया पारम्परिक गीत अगर गाने
है, तो इसमें हर्ज ही क्या है l बस जरुरत इस बात की है कि इस पूरी कवायद में कोई
दूसरी भाषा का अपमान ना हो l इस सुचना क्रांति के समय में पूरा विश्व एक नजर आ रहा
है l ओनलाईन
कम्युनिटी ग्रुप, सोसिएल
मिडिया जैसी जगहों पर सगज राजनेता और फिल्म अभिनेताओं को आम लोगों से सक्रीय रूप
से जुड़े हुए रहने के लिए उनसे वार्तालाप करना रहता है, जिसमे भाषा कही भी आड़े नहीं
आती l यहाँ उन्माद के लिए कोई जगह नहीं है l बस, जैसा कि ऑस्कर वाइल्ड ने लिखा है
कि दुनिया में केवल व्यक्ति रहते हैं और समाज उनके मन में...सूचना क्रांति का
हिस्सा बनने की जरुरत है, ना कि उससे किनारा करने की l अपने संस्कारों की जड़ों को
सींचने के लिए युवाओं में बोध करवाने की जिम्मेवारी भी हमारी है l हमें अपने
संस्कारों में जीवंतता घोलनी होगी ना कि शुष्कता l संक्षेप में अगर कहे, तब कहेंगे
कि दुःख कि इस धरती पर आंनद का राग हमेशा गूंजता रहे और बिखरते रहे उत्सवों और
त्योहारों का रंग, जिससे समस्त मानवजाति अपने दुःख और वेदनाओं को कुछ समय तक भूल
कर आनंद में सराबोर हो जाये l
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