असम में हिंदी भाषियों को बार बार संघर्ष क्यों करना पड़ता हैं
यह प्रश्न हर बार की तरह इस बार भी पूछा जा रहा
है कि असम में सामुदायिक हिंसा इतनी आसानी से क्यों भड़क जाती है l क्यों
वर्षों से रह रहे विभिन्न भाषा-भाषी लोगों के बीच रिश्तों के तार इतने कमजोर है कि
जरा सी चिंगारी उनके बीच आग पैदा कर देती है और लोग एक दुसरे के जान के दुश्मन बन
जाते हैं l इस
बार मामला कार्बी आंगलोंग का है, जहाँ स्थानीय कार्बी जनजाति और
हिंदी भाषियों के बीच इस समय तनाव चल रहा हैं l हिंदी भाषी संगठन अपनी सुरक्षा की
मांग तो कर ही रहे है, साथ ही वें चाहते है कि सभी भाषा-भाषी के लोग
आपस में मिल कर रहे और असम में शांति बनी रहे l कार्बी आंगलोंग में बड़ी संख्या में
बिहारी समुदाय के लोगों के अलावा, बंगला भाषी और नेपाली समुदाय, बोडो
जाति और असमिया भाषी लोग पिछले 100 वर्षों से रहते है, और
कार्बी आंगलोंग को अपना घर बना लिया हैं l कुछ असामाजिक तत्वों ने दोनों
समुदायों के बीच तनाव बढाने के उद्देश्य से एक स्थानीय युवक की उस समय पिटाई कर दी, जब
कुछ स्थानीय लोग शांतिपूर्वक प्रदर्शन करके लौट रहे थे l मामला
इतना गंभीर था कि हिंदी भाषी समुदाय के लोग और स्थानीय लोगों के बीच जबरदस्त तनाव
बन गया है l
उल्लेखनीय है कि कार्बी आंगलोंग में रहने वाले जनजाति के लोगों की सुरक्षा के लिए पहले
से ही स्वायत परिषद् का गठन बहुत पहले कर चुकी हैं l असम के मध्य में स्थित इस जिले को
मिनी इंडिया भी कहे तो गलत नहीं होगा, क्योंकि यहाँ पर हर जाति और समुदाय
के लोग वर्षों से बड़े प्रेम भाव से रहते आये हैं l एक ऐसा सामाजिक तानाबाना बना हुवा
है, जिसमे
हर जाति और समुदाय का एक रोल है l फिर प्रश्न यह उठता है कि बार बार
हिंदी भाषियों को क्यों टारगेट बनाया जाता हैं l कार्बी आंगलोंग प्राक्रतिक सुंदरता
से भरपूर है l अगर
उस क्षेत्र को पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित किया जाय, तब
इलाके के लोगों की आय में निश्चित रूप से वृद्धि हो सकती हैं l
देश की स्वतंत्रता के पश्चात, पूर्वोत्तर
की कई जनजातियों, जैसे नागा, मिज़ो बोडो आदि ने अपनी सांस्कृतिक
पहचान के आधार पर अलग राज्यों के साथ-साथ पूर्ण स्वतंत्रता की मांग करना शुरू कर दी
थी l यहाँ
गौर तलब है कि जब सन 1960 में जब राज्य सरकार ने असमिया भाषा
को आधिकारिक भाषा घोषित कर दिया था, तब बराक घाटी में आंदोलन शुरू हुवा
था, समूचे
असम में बड़े पैमाने पर हिंदी भाषियों पर अत्याचार हुए थे l कार्बी
आंगलोंग में भी व्यापक हिंसा हुई थी l राज्य की विभिन्न जनजातियां और
भाषाओं को बोलने वाले लोग खुद को अलग-थलग महसूस करने लगे थे। इससे आम लोग और
स्थानीय विद्रोही समूह आंदोलित हो उठे थे l पूर्वोत्तर में नागा विद्राह की आज
आज तक नहीं बुझी है l पूर्वोत्तर में नागालैंड और मेघालय राज्यों का
गठन क्रमशः 1963 और 1971 में
हुआ था। मेघालय के गठन के बाद, कार्बी आंगलोंग जिले को इसमें शामिल
होने के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन असम से अधिक स्वतंत्रता के
वादे के बाद जिले ने मेघालय में शामिल होने से इनकार कर दिया और असम के साथ रहने
की ठानी l हालांकि, बाद
में असम राज्य सरकार इस जिले को अधिक स्वायत्तता देने के लिए भारतीय संविधान की
छठी अनुसूची के अंतर्गत कार्बी आंगलोंग जिला परिषद् बना और बाद में इसे एक स्वायत
परिषद् बना कर कार्बी लोगों को अधिक स्वायतता देने की कौशिश की थी l पर
विभिन्न दल संगठनों के खड़े होने से अगले कुछ दशकों में तक राज्य में उग्रवाद और
आंदोलन का एक नया दौर शुरू हो गया। कार्बी आंगलोंग में हिंसा और हड़ताल का दौर शुरू
हो गया था l
सन 2021 में कार्बी आंगलोंग समझौते पर हस्ताक्षर
में, इस
जिले को अधिक स्वायत्तता का वादा किया गया है। इस समझौते के बाद, फिलहाल
ये उम्मीद की जा रही है कि आने वाले वर्षों में इस क्षेत्र में शांति और समृद्धि
बनी रहेगी। समझोते के तहत राज्य सर्कार प्रति वर्ष 1000 करोड़ रूपये कार्बी आंगलोंग
के विकास के लिए खर्च करेगी, जिससे पांच वर्षों तक जारी रखा
जायेगा l संविधान
के छठी अनुसूची के तहत सभी भूमि अधिकार स्वायत्त कोउसिल के पास है और कानून
व्यवस्था राज्य सरकार के पास है l समस्या उस समय विकत रूप ले लेती है, जब
करीब 100 वर्षों से रह रहे 10 हज़ार गैर कार्बी लोगों को सरकारी भूमि से बेदखल किया
जा रहा था l उस
भूमि पर सैकड़ों कच्चे-पक्के घर, मंदिर,
मस्जिद पहले से ही बने हुए हैं l हिंदी भाषी समुदाय के घरों को
उजाड़ने के अलावा, वहां
पर कई घरों को असामजिक तत्वों ने आग लगा दी और घरों में रह रहे लोगों को वहां से
खदेड़ दिया गया l ग्राजिंग
भूमि पर बने हुए यह घर जिनकी संख्या करीब 10 हज़ार है, उस
भूमि पर स्वायत्त शासित परिषद् का अधिकार जरुर है, पर वर्षों से रह रहे वहां पर लोगों के
पास बिजली पानी का कनेक्शन बहुत पहले से हैं l इलाके में 27 मंदिर और एक मस्जिद और
कई स्कुल भी हैं l सबसे
बड़ी बाटी यह है कि इनमे एक भी अवैध नागरिक नहीं है, जिनको राज्य सरकार चर इलाके से हटाती
है l पिछले
90 वर्षों से रह रहे लोग शत प्रतिशत भारतीय नागरिक है और अन्य लोगों की तरह उनके
पास भी समान अधिकार मौजूद हैं l
असम को एक आंदोलन की भूमि अगर कहे, तब
कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी l भाषा आन्दोलन के पश्चात, यहाँ
पर बंगला भाषियों के प्रति नफरत के भाव भी देखे गए थे l
हालाँकि असम आंदोलन की पृष्ठ भूमि यही थी कि असम से विदेशी नागरिकों की पहचान करके
उनको यहाँ से हटाया जाय l पर छह वर्षों तक चले आन्दोलन के
द्वरा भी लाखों बंग भाषी अवैध विदेशी लोगों को यहाँ से भगाया नहीं जा सका l उपर
से बड़ी संख्या में रह रहे हिंदी भाषियों पर समय समय पर प्रताड़ना होती रहती हैं l पुरे
राज्य में बड़ी संख्या में रह रहे हिंदी भाषियों ने सभी समुदाय के साथ मैत्रीपूर्ण
रिश्ते कायम किये और शांतिपूर्वक अपना जीवन यापन किया हैं l
सच्चाई यह भी है कि व्यापार और अपनी लम्बी कद काठी की वजह से वें आसानी से पहचाने
जाते है और अक्सर बाजारों में व्यापार करते हुए दिखाई दे जाते हैं l समय
के साथ शिक्षा के प्रचार-प्रसार के साथ स्थानीय लोगों ने भी शिक्षा के महत्त्व को
समझा है और वें भी अपने बच्चों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु देश की
नामी-गिरामी संस्थानों में भेजने लगे और देश की मुख्यधारा में शामिल होने का
प्रयास करने लगे हैं l शिक्षा ने सभी को अच्छे बुरे के फर्क को धीरे
धीरे समझा दिया है l पर सत्य अभी भी यही है कि यहाँ आन्दोलन के बिना
पत्ता भी नहीं हिलता l फिर भी असमिया मुख्यधारा में शामिल रह कर असमिया
अस्मिता की रक्षा करने के वचन जिन लोगों ने भी लिया है, वे असम के सच्चे हितेषी है
l जो लोग राष्ट्र विरोधी लोगों के साथ बैठ कर मंच पर बड़ी शान से मुछों को ताव
देतें है, उनको किस तरह की संज्ञा दी जाए, प्रश्न यह भी है lथोड़े थोड़े दिनों में
जातिगत हिंसा होने से राज्य के विकासकार्य में बाधा आनी स्वाभाविक है l
इसमें कोई दो राय नहीं है कि वर्षों से रह रहे
हिंदी भाषियों ने राज्य के विकास में उतना ही योगदान दिया है, जितना
की अन्य लोग दे रहे हैं l उनके योगदान की समीक्षा कभी भी नहीं
की गयी l इस
समय राज्य सरकार के पास चुनौती यह भी है कि वह कैसे इस मामले का यह न्यायपूर्ण
तरीके से समाधान करे, जिससे हिंदी भाषियों को यह विश्वास हो जाय कि
जिस राज्य में वें वर्षों से रह रहे है, वह उनके अधिकारों की सुरक्षा तो
करेगी ही, साथ
ही उनको एक सम्मानजनक जीवन जीने के लिए मार्ग प्रशस्त्र करेगी l इस
समय हिंदी भाषी संगठनों ने राज्य सरकार से गुहार लगे है और पीड़ितों की सुरक्षा और
मुवावजे की मांग की हैं l
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