Friday, June 5, 2020

जीने के लिए अब जद्दोजहेद करना होगा


जीने के लिए अब जद्दोजहेद करना होगा
कोविद संकट के दौरान किये गए लॉकडाउन में आम जनता द्वारा घरों में रह कर नए नए प्रयोग किये, जिनमे कई एक नए सामाजिक बदलाव की दिशा में कारगर सिद्ध हो रहे हैं l खास करके जब आमदनी के साधन नाममात्र के रह गए थे, ऐसे में बेहिसाब खर्च पर अपने आप ही पाबंदी लग गयी थी l एक बदलाव यह आया कि लोगों ने अपने बेहिसाब खर्चे पर लगाम लगा ली l जाहिर सी बात थी कि जब आमदानी कम तो खर्च भी कम l एक महत्वपूर्ण विषय विवेचना के लिए रख रहा हूँ, जिन पर टिपण्णी चाहूँगा l जो भी शादी हुई लॉकडाउन के दौरान वें, एकदम से शादी थी l मंत्रो के बीच ही शादियाँ संपन्न हुई हैं l इसे भी कोविद का वरदान मान कर एक उदहारण के रूप में ले लेना चाहिये और आने वाले दिनों में शादियों में होने वाले गैर जरुरी खर्चों पर पूरी तरह से पाबंदी लगाने पर विचार होना चाहिये l सामाजिक संगठन अपनी सभाओं में इस विषय को एक अहम् विषय मान कर विवेचना के लिए रखे और समाज से विचार आमंत्रित करें, तब एक आम राय बन सकती है l अभी कोविद के संकट के बाद समाज में शान-शौकत और दिखावे के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिये, जिसे मध्यमवर्गीय और निम्न-मध्यमवर्गीय लोगों को अवसाद की स्थिति नहीं भोगनी पड़े l विफलता की स्थिति ना आये, इसके लम्बे प्रयास करने होंगे l सामाजिक संगठन अपने समाज के लोगों के लिए क्या मदद कर सकती है, इस पर भी चर्चा हो सकती है l लगातार संघर्ष करने वाली जातियों के समक्ष यह समस्या है कि वें अपना स्वाभिमान नहीं छोड़ सकती, वे लगातार संघर्ष करके दुबारा अपने अस्तित्व को बचने में कामयाब हो जातें है l पर वर्त्तमान परिदृश्य में दो महीने के लॉकडाउन ने कईयों की कमर तोड़ दी हैं l इस स्थिति अंदाजा लोगों के बुझे हुए चेहरों को देख कर लगाया जा सकता है l क्यों नहीं उन लोगों की नेपथ्य में मदद की जाय, जिनको वाकई में समस्या हैं l आने वाले दिनों में चौनातियाँ दुगुनी है, क्योंकि स्कूल-कॉलेज सभी खुल रहें है, उनमे दाखिले के लिए मोटी रकम की आवश्यता होगी, जिसके आमजन को परेशानी होनी निश्चित ही है l इस बात में भी सच्चाई है कि समाज की जनसँख्या का एक बड़ा भाग अभी भी गरीबी का दंश भोग रहा है l इसी समाज के लोग पुरे देश में छोटी-छोटी नौकरी भी करतें है, और किसी तरह से अपने परिवार का भरण-पोषण करतें है l राजस्थान से उठ कर अपनी रोजी-रोटी तलाशने वाला समाज, प्रतिकूल पर्तिस्थितियों में भी दृढ इच्छा शक्ति रखता है, और दिक्कतों को चुनौतियां मानते हुए, उनका सामना करता है l अपनी जिजीविषा और अदम्य साहस का परिचय वह हर परिस्थिति में देता है l दो महीने में मध्यमवर्गीय लोगों पर मानों संकट का पहाड़ टूट पड़ा था l प्याज, भिन्डी और आलू के भाव को वह तलाशता है कि कही उसे पांच रुपये किलो कम में मिल जाए l इसे आम स्वभाव कह कर टालने का प्रयास ना कीजिये, यह एक स्थितिजनिक समस्या थी l लॉकडाउन के दौरान खाने के खर्च को छोड़ कर दुसरे खर्च, जैसे शौपिंग, सिनेमा या रेस्टोरंट जैसे खर्च बंद हो गए थे, जिससे लोगों के स्वभाव में एक नया सकारात्मक बदलाव भी देखने को मिल रहा है l लॉकडाउन ख़त्म होने के पश्चात अब जीवन सामान्य तो नहीं है, चुनौती दुगनी हो गयी है l कहने को तो दुकानें खुली हुई हैं, पर ग्राहक नदारद है l कर्मचारियों ने दुबारा से अपनी ड्यूटी ज्वाइन कर ली हैं l एक ऐसे परिदृश्य जिसे हम कहतें है, ‘जीवन के लिए जद्दोजहेद’, जिसमे हर तरह के उपक्रम होतें हैं l अथक प्रयास और जिजीविषा से तैयार की हुई जमीन अगर घिसकती हुई नजर आये, तब तकलीफ होनी स्वाभाविक है l मगर इस समय कुछ साहसिक व्यापारियों ने इस चुनौती को अवसर बना लिया है, कोविद संबंधित सामानों की बिक्री करके l मास्क, सेनिताइज़र और स्प्रे की बिक्री कई गुना हो गयी है l यें सामान अब आम आदमी की पहुच में आ गए है l बात अगर आर्थिक स्थिति कि करें, तब पाएंगे कि रेडीमेड कपड़ों की दुकानों, सजावट के समानों की दुकानों और यात्रा संबंधित उपकरणों की दुकानों और ज्वेलेर्री, घड़ी एवं सौन्दर्य प्रसाधनों की दुकानों पर लॉकडाउन का सबसे बड़ा प्रभाव पड़ा है l इन दुकानदारों के लिए बने रहने के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं l
संकट के समय उल्लास एवं उत्सव का समय नहीं है, अपितु चुनौती को अवसर बनाने का समय है l सबसे बड़ी बात है हौसले को बनाये रखना l इस मौके पर एक अनजान सी साभार कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ l
लहरों को साहिल की दरकार नहीं होती,
हौसला बुलंद हो तो कोई दीवार नहीं होती,
जलते हुए चिराग ने आँधियों से ये कहा,
उजाला देने वालों की कभी हार नहीं होती।      

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