Saturday, September 3, 2016

वैचारिक अभिव्यक्ति या बरबोलापन
रवि अजितसरिया


वैचारिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमारा संविधान हमें देता है l भारत में, किसी भी नागरिक को यह अधिकार है कि वह कुछ भी व्यक्त कर सकता है, जब तक की वह किसी के मान, धर्म और सम्प्रदाय को कोई हानि नहीं पहुचता l हमारे संविधान की 19वीं धारा में भारत के नागरिकों को अभिव्यक्ति की आज़ादी प्रदान की गयी है l किसी भी देश के नागरिकों की स्वतंत्रता की यह एक पहली निशानी है l अभिव्यक्ति की आज़ादी के बिना कोई भी अपने आप को स्वतंत्र नहीं कह सकता l हर नागरिक स्वतंत्र है, कुछ कहने के लिए, उसी तरह से हर नागरिक बंदी भी है उस आज़ादी के अनुशासन से, जहाँ वह, व्यक्ति, समाज और धर्म के मान मर्यादा के विरुद्ध टिपण्णी नहीं कर सकता l ऐसा करने पर उसके इस आचरण के लिए उसे कटघरे में भी खड़ा किया जा सकता है l ठीक ऐसा ही हुवा बम्बइया संगीतकार और आप समर्थक विशाल ददलानी के साथ l उन्होंने अभिव्यक्ति की आज़ादी की हदें पार कर के जैन धर्म गुरु तरुण सागरजी महाराज के विरुद्ध एक भद्दा मजाक किया, जिससे जैन धर्म के अनुयायियों की धार्मिक भावनाएं आहत हुई l कुछ लोग इस पुरे मामलें को राजनीति से जोड़ कर भी देख रहें है l उनका कहना है कि भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है, जहा सभी लोगों को अपने धर्म को मानाने का पूरा अधिकार है l राज्य भी अपनी निति निर्धारण में धर्म का कही हस्तक्षेप नहीं करता है l उनका यह भी कहना है कि अगर इस तरह धर्म गुरुओं को विधान सभा के पटल पर लाया जायेगा, तब अन्य धर्मों और आस्थाओं को मानाने वालें अनुयायियों की भी मांग उठेगी कि उनके गुरु को भी विधान सभा में प्रवचन के लिए बुलाया जाये l तब फिर भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे पर चोट पहुचेगी l उल्लेखनीय है कि तरुण सागरजी महाराज इससे पहले भी मध्य प्रदेश की विधान सभा में प्रवचन दे चुके है l पर हकीकत यही है कि विशाल ददलानी ने सोसिएल साईट ट्विटर का बेजा इस्तेमाल किया और अभिव्यक्ति की आज़ादी का अतिक्रमण कर, भारत में वास करने वालें 45 लाख जैन धर्मालंबियों के भावनाओं को आहत किया है l हालाँकि जैन गुरु पर विशाल की टिपण्णी से कोई फर्क नहीं पड़ा है, उन्होंने इसे दर किनारे कर दिया है, पर देश भर में विशाल ददलानी के विरुद्ध मामलें दर्ज हो रहें है l एक धर्म गुरु पर इस तरह से कोई टिपण्णी करे, इस बात को भारतीय धर्म परंपरा इजाजत नहीं देती, क्योंकि हर धर्म को मानाने और परिपालन के लिए भारत में पूरी आज़ादी है l इतिहास गवाह है कि भारत में नागा साधुओं और संतों के वास करने की परंपरा है l जैन मुनियों में खास बात यह रहती है कि वें अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का आजीवन व्रत रखतें है, वे आजीवन इस पथ पर चल कर जैन दर्शन और शास्त्र के उपर प्रवचन देतें है l ‘कड़वे वचन’ नाम से प्रकाशित उनकी पुस्तक और उनके प्रवचन पूरी दुनिया में इसलिए प्रख्यात है,  
क्योंकि उनके प्रवचन जैन पद्धति और व्यवहार दोने के उपर एक विहंगम दृश्य पेश करतें है l विभिन्न सामाजिक विषयों पर साफ़-साफ बात रखने वालें जैन मुनि जैन दर्शन के उन आयोमों को लोगों के सामने रखते है, जिनसे आम लोगों का संपर्क है l साफगोई के लिए जाने जाने वालें क्रांतिकारी जैन मुनि तरुण सागरजी महाराज ने हरयाणा विधान सभा में धर्म, राजनीति, समाज विज्ञान और दर्शन शास्त्र पर अपनी बात रखी l बेटी बचाओं आन्दोलन ले पक्षधर रहें, तरुण सागरजी महाराज ने अपने एक फोर्मुले के जरिये, समाज से आह्वान किया कि जिन घरों में बेटियां नहीं है, उस घर में लोगो शादियाँ ना करें, संत भिक्षा न ले, और चुनाव नहीं लड़ने दिया जाये l धर्म को राजनीति का अंग बनाने का भी उन्होंने आह्वान किया l उन्होंने विधान सभा में सभी विधायकों के समक्ष कहा कि धर्म का स्थान राजनीति से बहुत ऊँचा है और धर्म राजनीति का पति है, उसके दिखाएँ हुए पथ पर चलता है, इसलिए राजनीति को एक पत्नी की भांति अनुशासन में रहना चाहिये l और एक मुनि एक लिए यह कोई बड़ी बात नहीं हो सकती है कि देश के एक समृद्ध राज्य के सत्ता के केंद्र में प्रवचन के लिए उनको बुलाया जाये, क्योंकि अपरिग्रह के व्रत रखने वालें, मुनि के लिए चाहत और नाम की अभिलाषा लेश मात्र भी नहीं हो सकती l फिर भी देश के राजनेताओं ने इस कार्य के लिए हंगामा मचा दिया और जैन साधू के विरुद्ध अपमानजनक टिपण्णी कर डाली l टिपण्णी करने वाले अपने आप को आस्तिक, नास्तिक या पंथ के समर्थक नहीं कहते, और बैगेर शारीरिक या मानसिक उलझनों से प्रेरित होते हुए एक धर्मनिरपेक्ष भारत की वकालत करतें है l इस समय देश के जैन धर्मालंबियों ने भारत के विभिन्न शहरों में रेलियाँ निकाल कर विशाल ददलानी और तहशीन पूनावाला के विरुद्ध विरोध प्रकट कर रहें है l देश के कई शहरों में उनके विरुद्ध मामलें भी दर्ज किये जा रहें है l

भारतीय संस्कृति में धर्म और उसके मर्म को समझने और समझाने के लिए समय समय पर अनेकों ऋषि मुनियों ने एक अहम् रोल निभाया है l यह सिलसिला आज भी पहले की भांति चल रहा है, जिसके बल पर भारत में धर्म निरपेक्षता का अस्तित्व सम्भव आज के परिपेक्ष्य में संभव हो सका है l एक दुसरे के धर्म के बारे में अपमानजनक टिपण्णी करना, भारतीय संस्कृति के विरुद्ध है l इस बात पर अलग से बहस अवश्य हो सकती है कि भारत जैसे एक धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म गुरुओं को विधान सभाओं में निमंत्रित करना चाहिये या नहीं l              

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