Sunday, August 28, 2016

एक गतिशील और क्रियाशील व्यक्ति-कपूर चंद जैन
रवि अजितसरिया

कुछ लोगों में असाधारण प्रतिभा होती है, जिसके बल पर वे खुद तो भीड़ से अलग दिखाई देते ही है, साथ ही समूचा समाज उन प्रतिभाशाली व्यक्तियों के गहन ज्ञान से लाभान्वित हो जाता है l गुवाहाटी के मारवाड़ी समाज में एक ऐसे ही व्यक्ति है, कपूर चंद जैन, जिनका व्यक्तित्व इतना बड़ा और विशाल है कि उन्होंने जातिवादी संकीर्णता से उपर उठ कर, विभिन्न समाजों में अपनी पहचान बनाई है l असम में वास करने वालें, विभिन्न भाषा-भाषी लोगों में वे अच्छे-खासे लोकप्रिय है l अध्यात्म, साहित्य और समाज सेवा, मानो उनके लिए ही बनी हो l कपूर चंद जैन एक तपस्वी नहीं है, पर उनका अचार-व्यवहार, लोभ और मोह से दूर है, जिससे वे एक तपस्वी की भांति समाज में विराज कर रहें है l मायिक शक्तियों से दूर l श्री कपूर चंद जैन उन लोगों में है, जिन्होंने अपने सादे जीवन और उच्च विचार के सूत्र को अध्यात्म और व्यवहार, दोनों क्षेत्रों में भली-भांति उपयोग करकें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जैसे चारों पुरषार्थ को हर संभव अपने जीवन में उतारने की चेष्टा की है l उनका जन्म असम के कामरूप जिले के पलासबाड़ी नगर में हुवा था, जो असमिया धर्म-संस्कृति का एक केंद्र माना जाता है l यही से, उन्होंने असमिया भाषा में अपनी प्राम्भिक शिक्षा ग्रहण की थी l एक साहित्यकार, बहुभाषाविद, समाजसेवी, ग्रन्थज्ञाता, और धर्म विद्वान, कपूर चंद पाटनी ने असमिया भाषा को अपनी मातृ भाषा के बाद, सबसे अधिक प्यार किया, जिसमें उन्होंने, एक हिंदी भाषी होते हुए भी अपने छात्र काल में, कॉटन कॉलेज का अध्यन के दौरान, सर्वोच्च्य अंक प्राप्त किया l उनकी मृदु वाणी से हर समय लोग उनसे प्रभावित रहतें है l उनकी विषय पर सटीक और बेबाक टिपण्णी, इस बात की और भी इंगित करती है कि उनको विषय पर कितनी पकड़ है l धर्म और कर्म के उपर, एक विद्वान् की भाँती, उन्होंने कई दफा लीक से हट कर, भरी सभा में उन आम धारणाओं के विरुद्ध जा कर, ऐसें व्याख्यान भी दिए है, जिस पर समाज में विरोधाभास हो, जिस पर टिपण्णी करने से कोई भी बचता है l धर्म के प्रति उनकी गहरी आस्था होने के कारण, उन्होंने प्रपंचों और पाखंडों से अपने आप को हमेशा दूर रखा है l कई दफा उनको इस कारण अपने ही समाज के लोगों से आलोचना भी सुनानी करनी पड़ी थी l धर्म की वास्तविकता और मर्म को पहचानते हुए उन्होंने धर्म और मनुष्य के आचरण पर कई लेख और पुस्तकें भी लिखी है l  
अनेकों धर्म संस्थाओं से जुड़े रहने के कारण, उन्होंने हमेशा से ही सामाजिकता में विश्वास किया है l एक शिक्षाविध होने की वजह से उन्होंने जैन स्कूल के कार्यों को भली-भांति अंजाम दे कर स्कूल को एक उन्नत दर्जे की स्कूल के रूप में विकसित किया है l जैन पंचायत की कार्यकारिणी के सक्रीय सदस्य होने के साथ, उन्होंने जैन विद्यालय के महामंत्री के पद भी जिम्मेवारी बखूभी संभाल रखी है l घनिष्ठ रूप से असम साहित्य सभा से सम्बद्ध हो कर इन्होने ना सिर्फ अपनी एक अलग पहचान बनाई है, बल्कि असमिया समाज में मारवाड़ियों के मान भी बढाया है l असम साहित्य सभा के केन्द्रीय कमिटी में भी वे सदस्य रहें है l उन्होंने कई सभाओं और अधिवेशनों में सभा सञ्चालन का कार्य भी किया है l वर्ष 2017 में होने वाले असम साहित्य सभा के शताब्दी समारोह के लिए बनी हुई स्वागत समिती के वे उपाध्यक्ष है l शाकाहार पर उन्होंने दो पुस्तकों का असमिया में अनुवाद करके प्रकाशित की है l उन्होंने असमिया में चार पुस्तकें, अंग्रेजी में दो और बंगला में एक पुस्तक लिखी है l उन्होंने अब तक करीब एक सौ से अधिक पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिखे है, जिनसे सामाजिक चेतना का उदय हुवा l समाज में व्याप्त कुरीति, और अंधविश्वास पर उन्होंने ऐसे कई लेख लिखे, जिसकी वजह से समाज लाभान्वित हुवा है l एक साहसी लेखक का रोल अदा करके उन्होंने, ना सिर्फ अपना एक अलग परिचय दिया है, बल्कि हमेशा से नवीन विचारों का समाज में संचार होने दिया है l जैन शोध और विवेचना के क्षेत्र में श्री कपूर चंद जैन का नाम काफी लोकप्रिय है l उनकी दो पुस्तकें ‘अयिर्काओं की चर्या’ और ‘प्रश्नोतरी दीपिका’ जैन समाधानों और शंकाओं को दूर करने में एक मील का पत्थर साबित हुई है l अपनी वाणी और लेखनी के द्वारा उन्होंने जैन समाज की जो सेवा की है, वह सराहनीय ही नहीं बल्कि अनुकरणीय भी है l वे श्री मारवाड़ी हिंदी पुस्तकालय के ट्रस्टी भी है, जिसकी वजह से पुस्तकालय जैसे ज्ञान के मंदिर में उन्होंने कई ऐसी सभा का सञ्चालन किया, जिसमे हिंदी और असमिया समाज के विद्वान् मौजूद थे l बड़े से बड़े विषय पर उनकी टिप्पणियां, तुनुक और आह्लाद भरी रहने के कारण, जीवन के वैषम्य की दार्शनिक खोज पर उनका हमेशा से रुझान रहा है l संक्रमण काल से गुजर रहे समाज के समक्ष मूल्य आधारिक समाधान रख कर, हमेशा से ही जैन समाज में धर्म और कर्म के बीच के अंतर को समझने में उन्होंने एक बड़ी भुमिक निभाई है l वैचारिक अंतर, धर्म में आडम्बर और दिखावे को लेकर उनके एक सटीक विचार होने की वजह से वे हमेशा से स्वयं से युद्ध करतें है l 
जैन पुराणों पर सटीक जानकारी होने की वजह से ग्रथों के मार्मिक और यथार्थ चित्रण के पहलु को समाज के सामने हमेशा रखा है l  
भक्ति-मूलक ग्रंथों और पुस्तकों के अध्यन और उन पर विवेचन, कपूर चंद जैन की एक जीवन शैली बन गयी है l विषय को परम-तत्व तक पहुचाने में, उस पर विमर्श और तर्क, इनकी खासियत रही है l विस्मित कर देने वालें उनके शब्द, अक्सर लोगों में कोतुहल का कारण बन जाता है l रामायण और महाभारत पर इन्होने कई दफा अपना व्यक्तव्य रखा है l कपूर चंद जैन, जैन परंपरा और व्यवस्था के एक सशक्त प्रहरी के रूप में विद्यमान है, जिन्होंने अपनी रचनाओं में ढकोसलों और आडम्बरों को विरोध करने का एक बड़ा सशक्त और मार्मिक चित्रण वर्णित किया है l इन सभी से ना सिर्फ जैन समाज लाभान्वित हुआ है, बल्कि उन सामाजिक आयामों पर उनकी सटीक टिप्पणियों से समाज में जर्जर होती कुछ व्यवस्थाओं को हटाने पर भी उचित राय कायम हुई है l उन्होंने असमिया भाषा में स्थानीय अख़बारों में कई दफा लेख भी लिखे है l अंग्रेजी पत्र असम ट्रिब्यून, गुवाहाटी से निकलने वाले हिंदी समाचार पत्रों में आये दिनों, उनके बौद्धिक लेख, अक्सर लोगों के लिए मानसिक खुराक का काम करतें है l जीवन के इस पड़ाव पर पहुचने के पश्चात भी उन्होंने लेखन और सामाजिक कार्यों को जारी रखा है, और एक विशिष्ट उदहारण दिया है l आयु के सामने घुटने नहीं टेकने की उनकी दृढ़ता, कुछ ऐसे भाव है, जिससे शिथिलता और जड़ता उनमे कही भी नजर नहीं आती l स्नेह और सरलता की प्रतिमूर्ति श्री जैन, एक समग्र इंसान है, जिन्होंने भक्ति और शक्ति दोनों क्षेत्रों में अपना परिचय दिया है l  


No comments: