Friday, August 12, 2016

आयरन लेडी शर्मीला ने क्यों समाप्त की भूख हड़ताल
रवि अजितसरिया

‘मैंने 16 वर्षों तक भूख हड़ताल की और कुछ नहीं पाई, मैं अपने विवेक की बंदी थी, और अब मैं अपने आन्दोलन को दूसरा रूप देना चाहती हूँ’ l यह बात इरोम चानू शर्मीला ने उस वक्त कही जब वे अपनी 16 साल पुरानी भूख हडताल तोड़ रही थी l 44 वर्षीय, मणिपुर की नागरिक अधिकार की कार्यकर्ता इरोम  चानू शर्मीला पिछले 16 वर्षों से मणिपुर में सशस्त्र बल(विशेष अधिकार) अधिनियम 1958 के मणिपुर में लगाए जाने के विरोध में भूख हड़ताल पर बैठी थी l एक दशक से पूर्वोत्तर भारत का मणिपुर राज्य उग्रवाद से प्रभावित है, जिसकी वजह से हुई हिंसा में लगभग 6 हज़ार लोग अब तक मारे गएँ है l उल्लेखनीय है कि शर्मीला ने उस वक्त भूख हड़ताल की घोषणा की, जब सन 2000 में असम रायफल्स के जवानों की गोलीबारी से बस अड्डे पर खड़ें 10 लोग मारे गएँ थे l शर्मीला ने घोषणा की, कि जब तक भारत सरकार मणिपुर में सशस्त्र बल(विशेष अधिकार)अधिनियम 1958 को निरस्त नहीं करती, वह भूखी रहेगी, बाल नहीं बनाएगी और आइना नहीं देखेगी l आज सोलह वर्षों तक कठिन संघर्ष के बाद भी शर्मीला की मांग पूरी नहीं हो सकी है l अब लोकतांतत्रिक तरीकों से शर्मीला दुबारा से अपने आन्दोलन को जारी रखने की बात कर रही है l वे चुनाव लड़ना चाहती है, राज्य की मुख्यमंत्री बनाना चाहती है, शादी करके घर बसना चाहती है, और अपना संघर्ष को जारी रखना चाहती है l मणिपुर की इस लोह महिला का भूख हड़ताल का ज्यादातर समय जेल में ही बिता l जैसे ही वे जेल से छुटती, वह दुबारा भूख हड़ताल पर बैठ जाती, जिसकी वजह से ‘आत्महत्या एक क़ानूनी अपराध’ के मामले में उनको दुबारा से गिरफ्तार कर लिया जाता था l यह सिलसिला पिछले सोलह वर्षों से चल रहा था, जब 26 जुलाई 2016 को उन्होंने भूख हड़ताल समाप्त करने की यह घोषणा की थी l अब वे एक स्वतंत्र नागरिक की भांति जीवन यापन करना चाहेगी l उनके समर्थकों में ख़ुशी भी है और रोष भी है l मणिपुर में अस्थिरता फ़ैलाने वालें तत्वों ने तो उनको धमकी भी दे डाली है, कि वे अपना अनशन समाप्त कर, किसी बाहर के व्यक्ति से शादी नहीं कर सकती l गौरतलब है कि वे अपने गोवा स्थित ब्रिटिश प्रेमी डेसमंड से विवाह करने का निर्णय ले चुकी है l  
इरोम शर्मीला के इस सोलह वर्षों के संघर्ष की गाथा. पूर्वोत्तर में ही नहीं, समूचे विश्व में इसलिए भी फ़ैल गयी, क्योंकि वो भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के नक्शकदम पर चल रही थी, जिन्होंने विशाल अंग्रेजी शासन की नीवं, अपने अहिंसक तरीकों से हिला दी थी l उन्होंने भी कई भूख हड़तालें की और यह सिद्ध कर दिया कि अहिंसा में वह ताकत है जो हिंसा में नहीं l शर्मीला के आन्दोलन भी उसी तर्ज पर था l अगर हम भूख हड़ताल तोड़ने के उनके निर्णय की समीक्षा करते है, तब पातें है कि सबसे पहले, सोलह वर्षों के भूख हड़ताल से, उनका आम लोगों से उनका संपर्क लगभग टूट गया था,  
और यह मुहीम एक राजनैतिक आन्दोलन बन चुकी थी l दूसरा, एक लम्बे संघर्ष की यातनाओं को भोग कर वे थकी-थकी सी लग रही थी, जिसकी वजह से उन्होंने अपने आन्दोलन को दूसरा रूप देने का निर्णय लिया l तीसरा, सरकार में शामिल हो कर वे अपना संघर्ष ज्यादा असरदार तरीके से कर सकती है l मणिपुर राज्य के लोगों असीम प्रतिभा को देखते हुए, यह लग रहा है कि अगर राज्य में स्थाई शांति आ जाएँ, तब विकास की बयार यहाँ से भी बहने लगेगी l इसी भावना के साथ केंद्रीय सरकार ने मणिपुर को विशेष तब्बजो देनी शुरू कर दी है , जिसको लोग हालाँकि एक राजनैतिक कदम बता रहें है , पर राज्य में जिस तरह से विभिन्न गुट आपस में संघर्ष कर रहें है, राज्य में लोगों का जीना मुहाल हो रखा है l

शर्मीला का भूख हड़ताल से उठाना, उन कट्टरपंती सगठनों के लिए एक बड़ा झटका है, जो मणिपुर में पिछले दस वर्षों से विभिन्न कारणों की आड़ में हिंसक सघर्ष कर रहें है l अफस्पा हटाने को लेकर शर्मीला का भूख हड़ताल पर बैठना उनके लिए एक टॉनिक का काम कर रहा था l शर्मीला के भारतीय मुख्यधरा में शामिल होने से उनकी मुहीम को कही ना कही ब्रेक लगने की सम्भावना है l इसलिए उन संगठनों ने शर्मीला को अपना अनशन समाप्त नहीं करने का आदेश तक दे डाला l उपर से अगर शर्मीला चुनाव जीत कर राज्य की मुख्यमंत्री बन जाती है, तब उनके लिए परेशानी का सबब बन सकती है l शायद यही एक कारण है कि कट्टर्पंती संगठनों ने शर्मीला को विवाह करने से भी रोका है l पर दृढ शर्मीला ने मंगलवार को अनशन समाप्त करके, जमानत के कागजात पर अंगूठा लगा कर भारतीय संविधान और कानून के परिपालन हेतु अपनी सहमती भी प्रदान कर दी है, जो उन कट्टर्पन्तियों के मुहं पर करारा तमाचा है, जिन्होंने शर्मीला को भूख हड़ताल समाप्त करने से रोका रहें थें l हालाँकि भूख हडताल समाप्त करकें, कानून के प्रति निष्ठा व्यक्त करकें वे, मंगलवार को आज़ाद हो गयी थी, पर जिस इलाके में उसके रहने का इन्तेजाम किया गया था, वह के लोगों को अनजाने भय से भयाक्रांत होतें देखा गया, जिससे प्रशासन ने दुबारा शर्मीला को हॉस्पिटल में भरती कर दिया है l पूर्वोत्तर में हिंसा के लिए विभिन्न सगठनों ने भारतीय मुख्यधारा में आ कर अपने अपने राज्यों के विकास में भागिदार बनाने का भी फैसला लिया है l इसमें मिजोरम के पु लालदेंगा का नाम सबसे उपर आता है, जिन्होंने मिज़ो नेशनल फ्रंट बना कर 16 वर्षों तक सशस्त्र आन्दोलन किया और फिर 1987 में राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने l आज मिजोराम एक पूर्ण शाक्षर राज्य है, और विकास की राह पर है, वहा के लोग बेहद उद्यमी एवं साहसी है l इसी तरह से यह भी देखा जा रहा है कि शर्मीला के भारतीय मुख्यधारा में आने से मणिपुर में वर्षों से चल रही अशांति समाप्त हो सकती है l आने वाले दिनों में इसका फैसला हो जायेगा l                 

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