Friday, May 29, 2020

इस समय गुड गवर्नेंस ही एक मात्र उपाय


इस समय गुड गवर्नेंस ही एक मात्र उपाय

लोकप्रियता के मामले में मोदी सरकार को पुरे नम्बर देना उचित होगा l भाजपा 2.0 सरकार के पश्चात एक वर्ष बीत जाने के बाद भी जोश बना हुवा है l लोकतंत्र में सरकारी इच्छा शक्ति का बहुत बड़ा महत्व है l कोरोना के संकट के दौरान भले ही मजदूरों के मामले में उसकी थोड़ी किरकिरी हुई है, पर कोरोना महामारी से निपटने के लिए उसके द्वारा किये गए उपायों से सरकार को अन्तराष्ट्रीय स्तर पर काफी ख्याति मिली है l चार प्रमुख विषयों पर सरकार को शाबाशी भी मिली तो उसकी घोर आलोचना भी हुई l कश्मीर से अनुछेद 370 और 35ए हटाना, नागरिकता संसोधन 2016, ट्रिपल तलाक और कोविद l 2.0 को हम दो भागों में बाँट सकते है, कोविद के पहले का समय और कोविद के आने के पश्चात का काल l पहले जो राजनीतिक निर्णय लिए गए थे, उसी देश में आन्दोलन का ही दौर चला, एक वर्ग इतना असंतुष्ट था कि उसने लगातार आन्दोलन ही किये l नागरिकता संसोधन बिल और राष्ट्रिय नागरिकता पंजी का नवीनीकरण दो ऐसे विवादित निर्णय थे, जिन पर भारी जन विरोध हुवा हैं l पर अनुछेद 370 और 35ए के हटने और ट्रिपल तलाक को लेकर सरकार के निर्णय पर भारत कि आम जनता ने दिल खोल कर स्वागत किया l दरअसल में, जम्मू कश्मीर और लद्दाक क्षेत्र के विकास के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम था l घाटी में हर वर्ष एक बड़ी राशि बजट में विकास के लिए आवंटित होती थी, जिसका समुचित उपयोग नहीं होता था, नतीजा गरीबी और सरकार के प्रति आक्रोश l इसको इस तरह से भी समझ सकते ही कि अस्सी के दशक में जब असम में छात्र आन्दोलन जोरो से था, और एक सशस्त्र गोरिल्ला युद्ध की तैयारी भी लगभग पूरी हो चुकी थी, तब आम जन में यह समझाया गया कि केंद्र सरकार सभी विकास के मसलों पर रुकावट बन कर खड़ी है, पर राज्य सरकार जनता के साथ है, तब अन्दोलान्कर्ताओं द्वारा आन्दोलन के दौरान केन्द्रीय सरकार के अधीन सम्पतियों को नुकसान पहुचाया जाता था, केंद्रीय सुरक्षा बालों को निशाना बनाया जाता था, केंद्र के मंत्रियों के आगमन पर काले झंडे दिखाए जातें थे l प्रजातंत्र में यह भी एक दुखद पहलु है कि विकास की बयार गावं तक ना पहुचे और इसका ठीकरा हमेशा केंद्र सरकार पर फोड़ा जाए l जबकि समुचित विकास के लिए एक तंत्र बनाया अगया है, जो जिला मजिस्ट्रेट से लेकर गावं पंचायत प्रधान तक जाता है l इसका सीधा कंट्रोल राज्य सरकार के पास रहता है l अगर तंत्र सही तरीके से काम नहीं करेगा, तब आधा अधुरा विकास ही हमें मिलेगा l नारों और जुमलों से बहुत अधिक दिनों तक सरकार नहीं चल सकती l कोविद एक वैश्विक महामारी है, भारत अब चीन के आंकड़ों को पछाड़ कर आगे बढ़ चूका है l इतने बड़े देश में जहाँ जनसँख्या घनत्व इतना ज्यादा है, वहां महामारी से निबटने के लिए सरकार में कोई कसर नहीं छोड़ी है l यह बात अलग है कि महामारी के दौरान विस्थापित हुए मजदूरों को ठीक तरह से संभाला नहीं जा सका l बीच में राजनीति जो आ गयी थी l राज्यों के साथ बेहतर संवाद के बावजूद विपक्ष ने सरकार की योजनाओं पर पानी फेरने के लिए पूरा प्रयास किया l पर लॉकडाउन के समय को लेकर सरकार का मानना है कि उसने सही समय पर लॉकडाउन की घोषणा की है, जिससे लाखों लोगों की जान बचाई जा सकी हैं l विकसित देशों के बनिस्पत कोविद संक्रमण के बावजूद मृत्यु दर काफी कम रही l इससे लॉकडाउन की घोषणा को एक सही कदम माना जायेगा l किन्तु जब प्रवासी मजदुर पैदल ही सड़कों पर उतर आये, तब सरकार कोई त्वरित निर्णय नहीं ले पाई और नतीजा हमारे सामने है l अब सरकार ने श्रमिक स्पेशल ट्रेने चलाई है, जिससे लाखों मजदुर अपने घर पहुच सकें हैं l पर इसी बीच अफवाहों के बाजार इतना गर्म था कि जिन मजदूरों ने पैदल ही मार्च करने का निर्णय लिया था, वे अभी भी अपने गावं नहीं पहुच पायें है l मानव संसाधन की एक बड़ी हानी देश हो होगी, जिसका खामियाजा हम आने वाले दिनों में भुगतेंगे l
आने वाले दिनों में जब लॉकडाउन 4.0 समाप्त हो जायेगा, तब संभवतः लॉकडाउन 5.0 की भी, छुट के साथ घोषणा हो सकती हैं l इस समय चुनौती को अवसर बनाना होगा l कृषि एक ऐसा क्षेत्र है, जिस पर भारत का विश्वास टिका हुवा है l कृषि अब सिर्फ चावल-गेहूं उगाना नहीं है, इसमें कई तरह के उपक्रम आ गए हैं l पशुपालन, दुग्ध उत्पाद, हर्बल खेती, फ़ूड प्रोसेस्रिंग, मछली पालन, मधुमक्खी पालन, इत्यादि, कुछ ऐसे उपक्रम संचित हो गए है, जिनका एक बड़ा रेडीमेड बाज़ार उपलब्ध हैं l बीएस इस क्षेत्र में के बड़ी छलांग कि जरूरत है l कृषि आधारभूत संरचना को सुधारने के लिए जो घोषणा सरकार ने की है, उसको लागु करने के लिए सरकारी तंत्र को काम पर लगाना होगा l जिस तरह से कोरोना के संकट के दौरान पूरा सरकारी तंत्र दिन रात एक किये हुवे था, क्या मंत्री और क्या डिएम, सभी लगे हुए है, उसी तरह से देश की अर्थव्यवस्था को अगर दुबारा से पटरी पर लाना है, तब कृषि क्षेत्र को मजबूत बनाना होगा, जिससे वापस आये मजदुर भी अपनी जमीन पर खुद खेती कर सके l यह कार्य तभी हो सकेगा, जब सरकार कोरोना का ग्राफ गिरने के पश्चात अपने पुरे जज्बे से इस काम में लग जाएगी l         

Friday, May 15, 2020

कोरोना के बाद का एक आत्मनिर्भर भारत


कोरोना के बाद का एक आत्मनिर्भर भारत
हम यह आसानी से सोच सकतें है कि कोरोना महामारी के फैलने के दौरान आम आदमी किस मुसीबत में जीवन यापन कर रहा है l लाखों मजदूर जब सड़कों पर चल रहें है, उनके लिए इस समय कोई प्रोत्साहन पैकेज का कोई मतलब नहीं हैं l उनके लिए सहायता यही हो सकती हैं कि इस समय जरुरी यह है कि कैसे उनको अपने घर पहुचाया जाय l शायद केंद्र सरकार के पास इसकी कोई तात्कालिक योजना नहीं है l ‘आ अब लौट चले’ की तर्ज पर लाखों मजदूरों ने अपने मूल गावों की और पलायन किया हैं l इस समय इस बात की चिंता नहीं होनी चाहिये कि यह किसकी जिम्मेवारी है, क्योंकि जब मजदूर चल रहें है, तब वें किसी ना किसी राज्य कि सीमाओं में चल रहे होतें ही है, फिर इस बात पर बहस क्यों कि यह किसकी जिम्मेवारी है l इस समय हमारा बहुमूल्य मानवसंसाधन , जिसने आजादी के पश्चात से ही सूक्ष्म और लघु उद्योगों में अपने कर्मशक्ति से जान फूंकी है, और कभी भी संकट आया, तो डगमगाया नहीं l इस समय यह संकट एक महामारी का है, उपर से लॉकडाउन का चरण है l अगर राष्ट्रीय राजमार्गों पर चल रहे मजदूरों को सड़कों से बसों के जरिये अपने गंतव्य स्थानों पर नहीं ले जाया गया, तब प्रोतसाहन पैकेज का लाभ बाद में कौन उठाएगा l मजदुर तक तक थक हार कर हताश हो जायेंगे l कोरोना महामारी से जूझने के लिए राज्य सरकारों ने एक अभूतपूर्व योजनाबद्ध पद्दति के तहत पिछले छह महीनों में जुंझारू सैनिकों के तरह इस महामारी से लड़ा है l असम इसमें पुरे देश के समक्ष उदहारण बन गया है l राज्यों के मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, अधिकारीयों  और स्थानीय निकायों ने अभूतपूर्व कार्य करके कोरोना महामारी से लड़ने के लिए अपने आप को प्रस्तुत किया है l इसमें आम नागरिकों की भूमिका को भी उतना ही सम्मान दिया जाना चाहिये, जितना अन्य सभी को l क्योंकि प्रोत्साहन के साथ सहयोग उन्होंने ही दिया हैं l
एक आत्मनिर्भर भारत के आह्वान प्रधामंत्री ने अपने पिछले संबोधन में दिया है l असम के मुख्यमंत्री यह कह रहे है कि जो मानव संसाधन लौट कर आया है, वें राज्य के लिए सम्पति(एसेट) है ना कि दायित्व(लाइबिलिटी) है l आत्मनिर्भर भारत को बनने के लिए सूक्ष्म, लघु और माध्यम दर्जे के उद्योगों को दुबारा से जीवित करने के उद्देश्य से ही सरकार ने प्रोत्साहन पैकेज प्रस्तुत किया है l प्रोत्सहन पैकेज की तीसरी किस्त में खेती, दुग्ध व्यवसाय, पशुपालन, मछली पालन और फ़ूड प्रोसिंग जैसे व्यवसायों को प्रमुखता दी गई हैं l वित्त मंत्री ने 11 अलग-अलग चरणों में कृषि और कृषि व्यवसाय से जुड़े क्षेत्रों को दी जाने वाली राहत राशि का ऐलान किया हैं l कृषि क्षेत्र के लिए एक लाख करोड़ रुपये, सूक्ष्म खाद्य संस्करण इकाइयों की मदद के लिए 10 हज़ार करोड़ रुपये और मछुआरों और पशुपालकों के लिए 20 हज़ार करोड़ रुपये के फ़ंड का ऐलान किया हैं l पर बड़ा सवाल यह है कि यह पैकेज कितने दिनों तक लागु किया जाएगा या इसकी मियाद कितने दिनों तक रहेगी l योजन के मद में रूपया समाप्त होने तक या फिर सरकार की इच्छा शक्ति रहने तक l जो मजदुर अपने काम को छोड़ कर लौटें है, यह तो तय है कि वें कम से कम एक वर्ष तक वापस अपने पिछले काम में नहीं लौटेंगे l उनको अपने घरों के आस-पास काम दिलवाने के लिए यह जरुरी है कि छोटे-छोटे कल कारखाने खुले, जिससे इन मजदूरों को खपाया जा सके l अब बड़ी बात यह है कि भारत में कई तरह की सामाजिक, क़ानूनी और समस्याएँ और अड़चनें है, जिससे एकाएक नयें उद्योगों का खुलना थोड़ा मुश्किल सा लगता है l सभी तरह की क़ानूनी अड़चने समाप्त हो, इसके लिए सरकार को विशेष पहल करनी होगी, तभी लघु उद्योग पनप पायेगा l इस प्रोत्साहन पैकेज से आर्थिक सहायता के अभाव में बंद होने की कागार पर पड़े हुए उद्योगों को एक नया जीवन मिल सकता हैं l विमुद्राकरण के पश्चात से ही भारतीय लघु उद्योगों की कार्यप्रणाली में शितिलिकरण देखने को मिल रही थी l उपर से कोविद ने बची खुची आशा पर भी पानी फेर दिया है l ऐसे कई उद्योग है जिनमे  बनने वाले उत्पादनों की मांग दुबारा से कब आएगी, यह एक लाख टाका का प्रश्न हो सकता है l मसलन उन माध्यम दर्जे के कारखानों पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है जो पेकिंग मटेरियल, प्रिंटिंग और अन्य सहायक उपकरण बड़े कारखानों के लिए बनाते हैं l उनमे कम करने वाले मजदूरों के लिए अभी संकट आया हैं l या तो उन मजदूरों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है, या फिर संकट की परिस्थिति को देखतें हुए, मजदूरों ने खुद ही पलायन कर दिया हैं l एक स्थिति यह भी है कि लघु उद्योग बिना मजदुर फ़ोर्स के दुबारा कैसे उठ पायेगा, यह भी एक विचारनीय प्रश्न है l ऐसे में ऐसे लघु उद्योगों के लिए यह योजना एक बड़ी राहत लेकर आएगी, इसमें कोई दो राय नहीं है l                 

Friday, May 8, 2020

व्यापारियों को भी देश के विकास में पार्टनर बनाया जा सकता हैं


व्यापारियों को भी देश के विकास में पार्टनर बनाया जा सकता हैं
कभी कभी ऐसा लगता है कि कोविद के साथ ही अब आगे जीवन जीना पड़ेगा l स्वछता, सामाजिक दुरी और अपने जीवन में आवश्यक बदलाव ही समय कि मांग बन गयी है l संयम जीवन की कल्पना कर रहे लोगों ने हमेशा से ही इस बात कि वकालत की है कि अधिक वस्तुनिस्ट होने से मूल्यों का ह्रास होता है, जिससे एक समय के पश्चात तनाव और अवसाद पैदा होने का खतरा तो बना ही रहता है साथ ही कुछ नया पाने की महत्वाकांक्षा इतनी तीव्र रूप से घर कर लेती है कि उसको पाने के लिए मानव अपनी समस्त उर्जा लगा देता है l अभी लॉकडाउन में इस बात पर चिंतन अधिक हो रही है l अब आर्थिक दृष्टिकोण से कोविद पर बातें करतें है l भारत जैसी इकोनोमी में आम आदमी के लिए बहुत कुछ समाहित है l एक कल्याणकारी राज्य सरकार का एक रूप है जिसमें राज्य समान अवसर, समान वितरण के सिद्धांतों के आधार पर नागरिकों की आर्थिक और सामाजिक  रक्षा और संवर्धन करता है। कोविद के शुरू होने के समय से ही हम सरकार को इस सिद्धांत पर चलते हुवा देख रहें हैं l कोविद के चिन्ह या छाप हमें लगातार दिखाई दे रहें हैं l कही भुखमरी के रूप में तो कही राजपथ पर चलते हुए असहाय मजदूरों के रूप, कही बंद पड़े कारखानों के रूप में तो कही असहाय से व्यापारीवर्ग के रूप में l कोविद में किसी को भी नहीं छोड़ा है l इसके सूक्ष्म कण हमारी आधारभूत संरचनाओं को तहस नहस करने पर तुले हुए है l कोई भी कल्पना कर सकता है कि जो मजदुर वापास अपने गावों की ओर लौट गएँ है, वें वापस काम पर कब जायेंगे l उन कारखानों का क्या हाल होगा, जो अपना ज्यादातर उत्पादन हस्तचालित मशीनों से करतें हैं l मानव संसाधन भारत में इसकी जीडीपी में एक बड़ा रोले अदा कर रहें है l इस समय दुनिया भर के आर्थिक विशेषज्ञ इस बात पर जोर दे रहें हिया कि खंजर हो रही अर्थव्यस्था को दुबारा पटरी पर कैसे लाया जाय l खास करके भारत जैसी विकाशील अर्थव्यस्था को, जो एक साथ कई मानसिकताएं लेकर चलती है, उसको कैसे बचाया जाए l कैसे उसको किक स्टार्ट करे l व्यापार और वाणिज्य किसी भी देश की रीढ़ कि हड्डी होती है l इसको सुगमता से चलाने के लिए अब यह जरुरी हो गया है कि सरकार लाइसेंस राज को जड़ से ख़त्म करे l सिर्फ जीएसटी और आधार को ही हर जगह मान्य माना जाना चाहिये, तभी जा कर सुगमता उपलब्ध हो सकेगी l तभी व्यापारी बिना खौफ से व्यापार कर सकेंगे l उनको सही मायने में देश के विकास में पार्टनर के रूप में देखा जाना चाहिये l उनसे जुडी हुई तमाम चीजों को मान्यता प्रदान है l मसलन जो रोजगार वे देतें है, प्रदाता को कोई भी महत्व नहीं दिया जाता बल्कि ग्रहीता को ही महत्व दिया जाता रहा है l विभिन्न तरह के रोजगार कानून से प्रदाता को बांध दिया जाता है, जिससे देश में इंस्पेक्टर राज आज भी बना हुवा है l l जब देश में व्यापार करने की सुविधा नाम की योजना शुरू की गयी थी, तब ऐसा लगने लगा था कि राज्य सरकारें उन अवरोधों पर काम करेगी, जो व्यापार कि सुगमता में बाधक बन रही थी, पर ऐसा नही हुवा, बल्कि कुछ बड़े व्यापारिक घरानों को अधिक तब्बज्यों मिलने लगी l एमेसेमी उसी तरह से जद्दोजहेद करती हुई नजर आ रही है l घरेलु उद्योग नष्ट होने की कगार पर हैं l कोविद के बाद के परिदृश्य की और अगर देखते है, तब एकाएक बदन में सिहरन सी दौड़ने लगती है l क्योंकि सभी राज्यों के कामगारों ने अपने घरों की और रुख किया है l कुशल और प्रवीन कामगार हो या फिर आम मजदुर हो, सभी ने कोविद की वजह से अपने अपने कर्म क्षेत्र को त्यागा है l अब सवाल उठता है कि इन कामगारों के लिए संबंधित राज्य सरकारें काम कहा से लाएगी l सभी राज्यों में तो बड़े उद्योग या कारखाने नहीं है l खासकरके पूर्वी भारत में संख्या में कम उद्योगिक इकाइयों और छोटे कारखानों में कितने वापस आये हुए मजदुर ही खप पाएंगे, यह एक चिंता का विषय हैं, जो एक नई समस्या को जन्म देंगे l पहले से ही आंदोलनों और रुक रुक कर होने वाली हिंसा से पूर्वोत्तर में निवेश उस स्तर पर नहीं हुवा है, जिस स्तर पर समूचे भारत में हुवा है l उपर से कोविद के दौरान लॉकडाउन ने उद्योग-धंधे की कमर तोड़ दी हैं l  
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि संक्रमण से बचाने के लिए कुछ छुट के साथ लॉकडाउन 3.0 लागु किया गया है l लॉकडाउन से सामान्य जीवन की और जाने में अभी कितने महीने लगेंगे, इसके आंकलन लगाना अभी मुश्किल है l केंद्र और राज्य सरकारें इस बात पर चिंता भी व्यक्त कर रही है कि किस तरह से आम लोगों की मुसीबतों को कम की जाय l पर बड़ी बात यह है कि सरकार संवेदनशील हो कर व्यापारियों को व्यापार की सुगमता प्रदान करे l तंत्र तो दुबारा पटरी पर लाने के लिए अगर देश में छोटें और मंझ्लें व्यापारियों को अगले एक वर्ष तक लाइसेंसिंग राज से मुक्त करना, किसानों के उत्पादनों(फल, सब्जी, सभी) को सीधे खरीद कर मंडी तक पहुचना, जीएसटी के भुगतान में 50 फीसदी कि रियायत देना और रोजगार कानून में ढील देना, कुछ ऐसे उपाय हो सकते हैं, जिन पर सरकार विचार कर सकती है l अगर व्यापारी विकास करेंगे, तब देश में रोजगार बढेगा, जीवनयापन में सहायक सिद्ध होंगे और जिंदगियां भी बचायेंगे l एक बार देश की अर्थव्यवस्था दुबारा से पटरी पर आ जाती है, जैसे की कुछ आर्थिक विशेषज्ञ कह रहें हैं, अगले पांच वर्षों के पश्चात भारत को आर्थिक सिरमौर बनने में कोई नहीं रोक सकता है l