व्यापारियों को भी देश
के विकास में पार्टनर बनाया जा सकता हैं
कभी कभी ऐसा लगता है
कि कोविद के साथ ही अब आगे जीवन जीना पड़ेगा l स्वछता, सामाजिक दुरी और अपने जीवन
में आवश्यक बदलाव ही समय कि मांग बन गयी है l संयम जीवन की कल्पना कर रहे लोगों ने
हमेशा से ही इस बात कि वकालत की है कि अधिक वस्तुनिस्ट होने से मूल्यों का ह्रास
होता है, जिससे एक समय के पश्चात तनाव और अवसाद पैदा होने का खतरा तो बना ही रहता
है साथ ही कुछ नया पाने की महत्वाकांक्षा इतनी तीव्र रूप से घर कर लेती है कि उसको
पाने के लिए मानव अपनी समस्त उर्जा लगा देता है l अभी लॉकडाउन में इस बात पर चिंतन
अधिक हो रही है l अब आर्थिक दृष्टिकोण से कोविद पर बातें करतें है l भारत जैसी
इकोनोमी में आम आदमी के लिए बहुत कुछ समाहित है l एक कल्याणकारी राज्य सरकार का एक
रूप है जिसमें राज्य समान अवसर, समान वितरण के सिद्धांतों के आधार पर नागरिकों की आर्थिक और सामाजिक रक्षा और संवर्धन करता है। कोविद के शुरू होने
के समय से ही हम सरकार को इस सिद्धांत पर चलते हुवा देख रहें हैं l कोविद के चिन्ह
या छाप हमें लगातार दिखाई दे रहें हैं l कही भुखमरी के रूप में तो कही राजपथ पर
चलते हुए असहाय मजदूरों के रूप, कही बंद पड़े कारखानों के रूप में तो कही असहाय से
व्यापारीवर्ग के रूप में l कोविद में किसी को भी नहीं छोड़ा है l इसके सूक्ष्म कण
हमारी आधारभूत संरचनाओं को तहस नहस करने पर तुले हुए है l कोई भी कल्पना कर सकता
है कि जो मजदुर वापास अपने गावों की ओर लौट गएँ है, वें वापस काम पर कब जायेंगे l
उन कारखानों का क्या हाल होगा, जो अपना ज्यादातर उत्पादन हस्तचालित मशीनों से
करतें हैं l मानव संसाधन भारत में इसकी जीडीपी में एक बड़ा रोले अदा कर रहें है l इस
समय दुनिया भर के आर्थिक विशेषज्ञ इस बात पर जोर दे रहें हिया कि खंजर हो रही
अर्थव्यस्था को दुबारा पटरी पर कैसे लाया जाय l खास करके भारत जैसी विकाशील
अर्थव्यस्था को, जो एक साथ कई मानसिकताएं लेकर चलती है, उसको कैसे बचाया जाए l कैसे
उसको किक स्टार्ट करे l व्यापार और वाणिज्य किसी भी देश की रीढ़ कि हड्डी होती है l
इसको सुगमता से चलाने के लिए अब यह जरुरी हो गया है कि सरकार लाइसेंस राज को जड़ से
ख़त्म करे l सिर्फ जीएसटी और आधार को ही हर जगह मान्य माना जाना चाहिये, तभी जा कर
सुगमता उपलब्ध हो सकेगी l तभी व्यापारी बिना खौफ से व्यापार कर सकेंगे l उनको सही
मायने में देश के विकास में पार्टनर के रूप में देखा जाना चाहिये l उनसे जुडी हुई
तमाम चीजों को मान्यता प्रदान है l मसलन जो रोजगार वे देतें है, प्रदाता को कोई भी
महत्व नहीं दिया जाता बल्कि ग्रहीता को ही महत्व दिया जाता रहा है l विभिन्न तरह
के रोजगार कानून से प्रदाता को बांध दिया जाता है, जिससे देश में इंस्पेक्टर राज
आज भी बना हुवा है l l जब देश में व्यापार करने की सुविधा नाम की योजना शुरू की
गयी थी, तब ऐसा लगने लगा था कि राज्य सरकारें उन अवरोधों पर काम करेगी, जो व्यापार
कि सुगमता में बाधक बन रही थी, पर ऐसा नही हुवा, बल्कि कुछ बड़े व्यापारिक घरानों
को अधिक तब्बज्यों मिलने लगी l एमेसेमी उसी तरह से जद्दोजहेद करती हुई नजर आ रही
है l घरेलु उद्योग नष्ट होने की कगार पर हैं l कोविद के बाद के परिदृश्य की और अगर
देखते है, तब एकाएक बदन में सिहरन सी दौड़ने लगती है l क्योंकि सभी राज्यों के
कामगारों ने अपने घरों की और रुख किया है l कुशल और प्रवीन कामगार हो या फिर आम
मजदुर हो, सभी ने कोविद की वजह से अपने अपने कर्म क्षेत्र को त्यागा है l अब सवाल
उठता है कि इन कामगारों के लिए संबंधित राज्य सरकारें काम कहा से लाएगी l सभी
राज्यों में तो बड़े उद्योग या कारखाने नहीं है l खासकरके पूर्वी भारत में संख्या
में कम उद्योगिक इकाइयों और छोटे कारखानों में कितने वापस आये हुए मजदुर ही खप
पाएंगे, यह एक चिंता का विषय हैं, जो एक नई समस्या को जन्म देंगे l पहले से ही
आंदोलनों और रुक रुक कर होने वाली हिंसा से पूर्वोत्तर में निवेश उस स्तर पर नहीं
हुवा है, जिस स्तर पर समूचे भारत में हुवा है l उपर से कोविद के दौरान लॉकडाउन ने
उद्योग-धंधे की कमर तोड़ दी हैं l
इस बात में कोई दो
राय नहीं है कि संक्रमण से बचाने के लिए कुछ छुट के साथ लॉकडाउन 3.0 लागु किया गया
है l लॉकडाउन से सामान्य जीवन की और जाने में अभी कितने महीने लगेंगे, इसके आंकलन
लगाना अभी मुश्किल है l केंद्र और राज्य सरकारें इस बात पर चिंता भी व्यक्त कर रही
है कि किस तरह से आम लोगों की मुसीबतों को कम की जाय l पर बड़ी बात यह है कि सरकार
संवेदनशील हो कर व्यापारियों को व्यापार की सुगमता प्रदान करे l तंत्र तो दुबारा
पटरी पर लाने के लिए अगर देश में छोटें और मंझ्लें व्यापारियों को अगले एक वर्ष तक
लाइसेंसिंग राज से मुक्त करना, किसानों के उत्पादनों(फल, सब्जी, सभी) को सीधे खरीद
कर मंडी तक पहुचना, जीएसटी के भुगतान में 50 फीसदी कि रियायत देना और रोजगार कानून
में ढील देना, कुछ ऐसे उपाय हो सकते हैं, जिन पर सरकार विचार कर सकती है l अगर व्यापारी विकास करेंगे, तब देश में रोजगार बढेगा, जीवनयापन में सहायक सिद्ध
होंगे और जिंदगियां भी बचायेंगे l एक बार देश की
अर्थव्यवस्था दुबारा से पटरी पर आ जाती है, जैसे की कुछ आर्थिक विशेषज्ञ कह रहें
हैं, अगले पांच वर्षों के पश्चात भारत को आर्थिक सिरमौर बनने में कोई नहीं रोक
सकता है l
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