Friday, May 15, 2020

कोरोना के बाद का एक आत्मनिर्भर भारत


कोरोना के बाद का एक आत्मनिर्भर भारत
हम यह आसानी से सोच सकतें है कि कोरोना महामारी के फैलने के दौरान आम आदमी किस मुसीबत में जीवन यापन कर रहा है l लाखों मजदूर जब सड़कों पर चल रहें है, उनके लिए इस समय कोई प्रोत्साहन पैकेज का कोई मतलब नहीं हैं l उनके लिए सहायता यही हो सकती हैं कि इस समय जरुरी यह है कि कैसे उनको अपने घर पहुचाया जाय l शायद केंद्र सरकार के पास इसकी कोई तात्कालिक योजना नहीं है l ‘आ अब लौट चले’ की तर्ज पर लाखों मजदूरों ने अपने मूल गावों की और पलायन किया हैं l इस समय इस बात की चिंता नहीं होनी चाहिये कि यह किसकी जिम्मेवारी है, क्योंकि जब मजदूर चल रहें है, तब वें किसी ना किसी राज्य कि सीमाओं में चल रहे होतें ही है, फिर इस बात पर बहस क्यों कि यह किसकी जिम्मेवारी है l इस समय हमारा बहुमूल्य मानवसंसाधन , जिसने आजादी के पश्चात से ही सूक्ष्म और लघु उद्योगों में अपने कर्मशक्ति से जान फूंकी है, और कभी भी संकट आया, तो डगमगाया नहीं l इस समय यह संकट एक महामारी का है, उपर से लॉकडाउन का चरण है l अगर राष्ट्रीय राजमार्गों पर चल रहे मजदूरों को सड़कों से बसों के जरिये अपने गंतव्य स्थानों पर नहीं ले जाया गया, तब प्रोतसाहन पैकेज का लाभ बाद में कौन उठाएगा l मजदुर तक तक थक हार कर हताश हो जायेंगे l कोरोना महामारी से जूझने के लिए राज्य सरकारों ने एक अभूतपूर्व योजनाबद्ध पद्दति के तहत पिछले छह महीनों में जुंझारू सैनिकों के तरह इस महामारी से लड़ा है l असम इसमें पुरे देश के समक्ष उदहारण बन गया है l राज्यों के मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, अधिकारीयों  और स्थानीय निकायों ने अभूतपूर्व कार्य करके कोरोना महामारी से लड़ने के लिए अपने आप को प्रस्तुत किया है l इसमें आम नागरिकों की भूमिका को भी उतना ही सम्मान दिया जाना चाहिये, जितना अन्य सभी को l क्योंकि प्रोत्साहन के साथ सहयोग उन्होंने ही दिया हैं l
एक आत्मनिर्भर भारत के आह्वान प्रधामंत्री ने अपने पिछले संबोधन में दिया है l असम के मुख्यमंत्री यह कह रहे है कि जो मानव संसाधन लौट कर आया है, वें राज्य के लिए सम्पति(एसेट) है ना कि दायित्व(लाइबिलिटी) है l आत्मनिर्भर भारत को बनने के लिए सूक्ष्म, लघु और माध्यम दर्जे के उद्योगों को दुबारा से जीवित करने के उद्देश्य से ही सरकार ने प्रोत्साहन पैकेज प्रस्तुत किया है l प्रोत्सहन पैकेज की तीसरी किस्त में खेती, दुग्ध व्यवसाय, पशुपालन, मछली पालन और फ़ूड प्रोसिंग जैसे व्यवसायों को प्रमुखता दी गई हैं l वित्त मंत्री ने 11 अलग-अलग चरणों में कृषि और कृषि व्यवसाय से जुड़े क्षेत्रों को दी जाने वाली राहत राशि का ऐलान किया हैं l कृषि क्षेत्र के लिए एक लाख करोड़ रुपये, सूक्ष्म खाद्य संस्करण इकाइयों की मदद के लिए 10 हज़ार करोड़ रुपये और मछुआरों और पशुपालकों के लिए 20 हज़ार करोड़ रुपये के फ़ंड का ऐलान किया हैं l पर बड़ा सवाल यह है कि यह पैकेज कितने दिनों तक लागु किया जाएगा या इसकी मियाद कितने दिनों तक रहेगी l योजन के मद में रूपया समाप्त होने तक या फिर सरकार की इच्छा शक्ति रहने तक l जो मजदुर अपने काम को छोड़ कर लौटें है, यह तो तय है कि वें कम से कम एक वर्ष तक वापस अपने पिछले काम में नहीं लौटेंगे l उनको अपने घरों के आस-पास काम दिलवाने के लिए यह जरुरी है कि छोटे-छोटे कल कारखाने खुले, जिससे इन मजदूरों को खपाया जा सके l अब बड़ी बात यह है कि भारत में कई तरह की सामाजिक, क़ानूनी और समस्याएँ और अड़चनें है, जिससे एकाएक नयें उद्योगों का खुलना थोड़ा मुश्किल सा लगता है l सभी तरह की क़ानूनी अड़चने समाप्त हो, इसके लिए सरकार को विशेष पहल करनी होगी, तभी लघु उद्योग पनप पायेगा l इस प्रोत्साहन पैकेज से आर्थिक सहायता के अभाव में बंद होने की कागार पर पड़े हुए उद्योगों को एक नया जीवन मिल सकता हैं l विमुद्राकरण के पश्चात से ही भारतीय लघु उद्योगों की कार्यप्रणाली में शितिलिकरण देखने को मिल रही थी l उपर से कोविद ने बची खुची आशा पर भी पानी फेर दिया है l ऐसे कई उद्योग है जिनमे  बनने वाले उत्पादनों की मांग दुबारा से कब आएगी, यह एक लाख टाका का प्रश्न हो सकता है l मसलन उन माध्यम दर्जे के कारखानों पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है जो पेकिंग मटेरियल, प्रिंटिंग और अन्य सहायक उपकरण बड़े कारखानों के लिए बनाते हैं l उनमे कम करने वाले मजदूरों के लिए अभी संकट आया हैं l या तो उन मजदूरों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है, या फिर संकट की परिस्थिति को देखतें हुए, मजदूरों ने खुद ही पलायन कर दिया हैं l एक स्थिति यह भी है कि लघु उद्योग बिना मजदुर फ़ोर्स के दुबारा कैसे उठ पायेगा, यह भी एक विचारनीय प्रश्न है l ऐसे में ऐसे लघु उद्योगों के लिए यह योजना एक बड़ी राहत लेकर आएगी, इसमें कोई दो राय नहीं है l                 

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