Saturday, September 3, 2016

इस तरह के विकास के क्या मायने है ?  
रवि अजितसरिया


यह एक विचारणीय प्रश्न है कि विकास के लिए लोग है या लोगों के लिए विकास है l यानी जो विकास होगा उसका फायदा लोगों को मिलेगा या नहीं l जिस विकास से लोगों को कोई फायदा नहीं, उस विकास के क्या मायने l इसी उपापोह में कभी-कभी कुछ ऐसी योजनायें बना दी जाती है कि देखने में तो काफी रंग बिरंगी लगती है, पर जैसे एक उनुपयोगी योजना के क्रियान्वयन में वे मुश्किलें तो आनी ही है, सो आती है, जिससे आम लोगों की जिंदगी बाधित होने लगती है l हमारे यहाँ विकास के मायने है, चौड़ी सड़कें, रेल या सड़क पुल, ऊँची-ऊँची अट्टालिकाएं, इत्यादि l इससे उपर अगर हम देखें, तब पाएंगे कि राजनीति ने सब कुछ गड़बड़ कर दिया है l धडा-धड़ घोषणाएं, आनन फानन उन घोषणाओं पर कार्य शुरू करना, चाहे उस योजना पर उचित तैयारिया हुई हो या नहीं l बस करना है l सारे विकास के मापदंड राजनीति के आगे बोने हो जातें है l किस तरह का विकास हमें चाहिये, ब्रिटिश, अमेरिकन या भारतीय l क्या भारतीय राजनेता इतने असंवेदनशील हो गएँ है कि उन्हें घर के आसपास घोर गरीबी और लाचारी दिखाई नहीं पड़ती, और वे चल पडतें है एक कल्पना की दुनिया में जहाँ से वे विकास के नए सपने देखने लागतें है l एक ऐसा मॉडल, जिसमे कम से कम आम भारतीय तो समा नहीं सकता l अगर ऐसा नहीं होता, तब वर्षों से निचली सुवान्सिरी विद्युत प्रकल्प पर कार्य बंद नहीं रहता l एम्स के स्थान को लेकर विवाद नहीं होता l अगर घोषणा के पूर्व आम राय बना ली जाती तब, यह सब नहीं होता l पर हम एक अमेरिकन मॉडल को भारतीय लोगों में समाहित कर देना चाहतें है, जो लोगों का सर्वस्व छीन लेने को आतुर है l अगर लोग ही नहीं रहेंगे, तब विकास किसके लिए l क्या गरीबों के जीने का स्तर भारत में इन वर्षों में अप्रत्याशित रूप से ऊँचा हुवा है ? फिर विकास के क्या मायने l जमीनी स्तर से चीजों को ठीक करने में जुटी सरकार, शायद भारत के सामाजिक ढांचे को समझने में भूल गयी है, जो अभी भी पुरातनपंथी और रुढ़िग्रस्त है l इसकी जड़े हजारों वर्षों पुरानी है l हमर सामाजिक तानाबाना ही कुछ ऐसा है l राजनीति इसका कुछ बिगाड़ नहीं सकती l पर रोजाना अपनी पीठ थपथपाते मंत्रियों और अधिकारीयों की भीड़ हमें टेलीविज़न के परदे पर अक्सर दिखाई दे जाती है, एक उन्नत मानवीय राजनीति के स्थान पर असंवेदनशीलता और आलोचनाओं से घिरी हुई, जहाँ कोई श्रेष्ठता का बोध नहीं है l असंवेदनशीलता की बानगी तो देखिये, जबरदस्त अफ़सोस होगा l पूर्वोत्तर की सबसे बड़ी व्यापारिक मंडी फैंसी बाज़ार का एक व्यस्तम रास्ता, हेम बरुआ रोड, हमेशा भीड़-भाड़ से भरा हुवा l इस रास्तें और इससे सटी हुई गलियों में करीब 10 हज़ार थोक एवं फुटकर दुकाने है l सभी इसी रास्ते पर निर्भर l करीब 200 से ज्यादा खोमचे वालें यहाँ पर दूकान लगा कर अपना परिवार चलातें है l  

इस समय लोहिया मार्किट के सामने मुड़ी, आलू चाट का खोमचा लगाने वाले राम लक्ष्मण साह के लिए सबसे मुश्किल भरे दिन है, क्योंकि रास्ते को पिछले तीन महीनों से, एक सोंदर्य योजना के तहत खोद कर रख दिया गया है, जिससे इलाके में ग्राहकों का आने पहले से काफी कम हो गया है l एक धुल भरी सड़क पर खोमचों वालों से अक्सर लोग दूर ही रहतें है l ऐसा समझा जा रहा है कि गंगटोक के एम जी मार्ग से प्रेरित हो कर, अति उत्साह में, राज्य के किसी वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी द्वारा बनाई गयी है, यह योजना, जिसका विरोध यहाँ के व्यापारी कर रहें है l कमाल की बात यह है कि इतने बड़े विरोध के बावजूद भी गुवाहाटी नगर निगम इस प्रकल्प तो आगे ले जाने के लिए आतुर है l व्यापारियों का मानना है कि इस रास्ते को अगर यातायात के लिए बंद कर दिया गया, तब इलाके में वर्षों से दुकानदारी कर रहें, दुकानदारों के लिए रोजी रोटी का संकट आ जायेगा l उपर से इलाकें में रहेनें वालें स्थाई वासिंदों के लिए, उनके रहवास में, गंभीर समस्याएं पैदा हो जाएगी l कुछ लोगों का मानना है कि यह एक व्यवसायिक इलाका है, और इसमें इस तरह से सौन्दर्यकरण नहीं किया जा सकता, जिसमे यातायात को पूरी तरह से बंद कर दिया जाये l उपर से यह भी माना जा रहा है कि करीब दस हज़ार वाहन यहाँ से रोजाना गुजरतें है, उन वाहनों को दूसरी और मोड़ा जाएगा, जिसके लिए निगम और यातायात विभाग के पास कोई अलग से योजना नहीं है l महात्मा गाँधी रोड और ए टी रोड जो पहले से अधिक यातायात होने से बाधित है, उस पर अगर रोजाना दस हज़ार वाहन अधिक चलने लगें, तब कोई भी कल्पना कर सकता है कि गुवाहाटी में वाहन ले कर चलना कितना दुस्कर हो जायेगा l जबरदस्त विरोध के मद्देनजर, गुवाहाटी नगर निगम ने हालाँकि, व्यापारियों को अस्वासन तो दे दिया है, कि जब तक उन्हें गुवाहाटी मेट्रोपोलिटन विकास प्राधिकरण और यातायात विभाग से ‘नो ऑब्जेक्ट’ सर्टिफिकेट नहीं मिल जाता है, वे इस प्रकल्प को आगे नहीं बढ़ाएंगे, मगर प्रकल्प को पूरी तरह से बंद करने के लिए सहमती प्रदान नहीं की है l अब बड़ा प्रश्न यह है कि क्या इलाकें के दस हज़ार लोगों का विरोध का कोई मायने नहीं है ? एक चालू रास्ते को बंद करना, ना सिर्फ वह रह रहें हजारों लोगों की रोजी रोटी का प्रश्न को पैदा करेगा ही, साथ ही नगर का विकास पूरी तरह से अवरुद्ध हो जायेगा l l मजे की बात यह है कि इसी फैंसी बाज़ार में दसों सामाजिक संस्था और कई व्यावसायिक संगठन कार्यरत है, मगर उनकी तरफ से विरोध के स्वर यहाँ के लोगों को सुनाई नहीं देते l व्यापारियों में एकता नहीं होने का खामियाजा यहाँ के वासिंदे और व्यापारी आज भुगत रहें है l वे किसके समक्ष गुहार लगाये, कौन उनकी सुनेगा l क्या विकास के यही मापदंड है ? क्या इसी को हम विकास कहेंगे ?         

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