Friday, August 9, 2024

दुनिया भर के छात्र आंदोलन एक विचार पर चलते हैं

 

    

छात्र आंदोलन एक विचार पर चलते हैं



बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया नोबल शांति पुरस्कार विजेता मुहम्मद युनुस ने आंदोलन कर रहे छात्रों की भरपूर तारीफ की हैं और कहा कि छात्र उन्हें जो राह दिखलायेंगे, वे उसी राह पर चलेंगे l इतना ही नहीं सेना द्वारा समर्थित अंतरिम सरकार में छात्र आंदोलन के अगुवा दो छात्रों को जगह ही नहीं दी गयी, बल्कि उनको महत्वपूर्ण विभाग भी आवंटित किये गए हैं l पूरी दुनिया में इतिहास है कि छात्र आंदोलनों की वजह से सत्ता परिवर्तन देखे गए हैं l फ्रांस में 1960 में छात्र आंदोलन की वजह से उसके राष्ट्र नायक की देश छोड़ कर भागना पड़ा था l बांग्लादेश में भी यही हुवा l शेख हसीना को भी इस्तीफा दे करे देश छोड़ कर भागना पड़ा l छात्र आंदोलन एक विचार पर चलता है l असम में छह वर्षों तक छात्र आंदोलन चला l विचार था, असम की भूमि से विदेशी नागरिकों को हटाना और असम के नागरिकों के अधिकारों को सुरक्षित करना और असमिया लोगों के  लिए एक सुरक्षा कवच कायम करना l उल्लेखनीय है कि उन्नीसवीं सदी और खासतौर पर आज़ादी बाद यह क्षेत्र खास तरह के राजनीतिक पुनर्जागरण के दौर से गुज़रा, जिसने असम लोगों में अपनी भाषा, संस्कृति, साहित्य, लोक कला और संगीत के प्रति गर्व की भावना पैदा की। राज्य की सांस्कृतिक, भाषायी और धार्मिक विविधता को देखते हए ऐसा लग रहा था कि किसी एक भाषा और संस्कृति को मान्यता देना एक जटिल प्रक्रिया थी । एकीकृत असमिया संस्कृति की तरफ़दारी करने वाले बहुत से लोगों का यह भी मानना रहा है कि आदिवासी इलाकों को अलग से विशेष अधिकार देकर या मेघालय, मिजोरम, नगालैण्ड और अरुणाचल प्रदेश जैसे अलग राज्यों को निर्माण करके केंद्र सरकार ने एक व्यापक असमिया पहचान के निर्माण में रुकावट डालने का काम किया है। इसीलिए असम के युवाओं में केंद्र के प्रति एक नकारात्मकता और आक्रोश की भावना रही है l बांग्लादेश की तरह असम आंदोलन का नेतृत्व भी यहाँ के छात्र ही कर रहे थे l उसका केंद्र भी ढाका विश्वविद्यालय ही था l आंदोलनके समय आसू के मुख्य कार्यालय भी गौहाटी विश्वविध्यालय ही था l असम के छात्र भी स्थनीय लोगों के लिए नौकरियों में शत-प्रतिशत आरक्षण की मांग कर रहें थें l भूमि, रोजगार जैसे मुद्दे असम आंदोलनका मुख्य हिस्सा थे l असम आंदोलनके समय जब हितेश्वर सैकिया के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार ने दमनकारी निति से छात्र आंदोलन को दबाने की चेष्टा की, लेकिन  आंदोलन और अधिक प्रखर और जीवंत हो गया l राज्य के बुद्धिजीवियों ने खुल कर आंदोलन के पक्ष में बयान देना शुर कर दिया था l इसी बीच असम सरकार ने विधानसभा चुनाव भी करवाएं, पर उसका भारी विरोध हुवा और इतिहास बनने के पश्चात न्यूनतम मतदान होने के पश्चात हितेश्वर सैकिया असम के मुख्यमंत्री बने l पर आंदोलनरुका नहीं l पुरे देश में असम आंदोलनकी गूंज थी l अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं ने खुल कर आंदोलन कर समर्थन किया था l बांग्लादेश के छात्र आंदोलन और असम आंदोलनमें जमीन आसमान का फर्क है l बांग्लादेश के छात्र आंदोलन आरक्षण वरोधी आंदोलनकब हसीना हटाओं आंदोलनबन गया, इसका किसी को पता नहीं चला l एक बड़ा फर्क यह भी था कि असम आंदोलन गाँधी के सिद्धांतों पर कायम था l शांतिपूर्ण औरे विवेकपूर्ण l थोड़ी बहुत हिंसा को छोड़ कर ज्यादातर छह वर्ष तक चले आंदोलन के दिन शांतिपूर्ण रहे l यहाँ पर इमारतों को नहीं जलाया गया, गैर असमिया को नहीं मारा गया l बड़ी संख्या में रह रहे भारतीय मूल कर लोगों को किस किस्म का नुकसान आन्दोलनकारियों ने नहीं पहुचाया l उलटे, यह भी देखने में आया कि असम में रह रहे गैर असमिया लोगों ने आंदोलनका भारी समर्थन किया और 1983 में हुए चुनावों का बहिष्कार भी किया l आसू आज तक भी गैर असमिया लोगों के उस सहयोग को मान्यता प्रदान करता हैं l पुरे आंदोलन में 855 स्थानीय छात्रों की मृत्यु हुई, जो पुलिसिया बर्बत्ता के शिकार हुए l हजारों छात्रों को जेल भेजा गया और आंदोलन को दबाने की चेष्टा की गयी l राजनैतिक तौर पर और डंडे के जोर पर भी l जब केंद्र सरकार ने 1983 में असम में विधानसभा चुनाव कराने का फ़ैसला किया। इसका बड़े पैमाने पर बहिष्कार किया गया । इन चुनावों में बहुत कम वोट डाले गये। जिन क्षेत्रों में असमिया भाषी लोगों का बहुमत था, वहाँ तीन प्रतिशत से भी कम वोट पड़े। मतदान केंद्र सुने पड़े थे l कांग्रेस सरकार ने अलग अलग भाषाई लोगों में फुट डालने का कार्य करके आंदोलनको ध्वंश करने की असफल चेष्टा भी की l चुनावों के बाद कांग्रेस पार्टी की सरकार ज़रूर बनी, लेकिन इसे कोई लोकतांत्रिक वैधता हासिल नहीं थी। 1983 की नेल्ली कांड असम आंदोलन के बीच का एक हिंसक वाकया था, जो इतिहास के पन्ने पर दर्ज हो गया, जिसमे 3000 से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतर दिया गया था l 15 अगस्त 1985 को केंद्र की राजीव गाँधी सरकार और आंदोलन के नेताओं के बीच समझौता हुआ जिसे असम समझौते के नाम से जाना गया। इसके तहत 1951 से 1961 के बीच आये सभी लोगों को पूर्ण नागरिकता और वोट देने का अधिकार देने का फ़ैसला किया गया। असमिया लोगों की सांस्‍कृतिक, सामाजिक, भाषायी पहचान व विरासत को सुरक्षित एवं संरक्षित करने के लिए असम समझोते में छह नंबर धारा महत्वपूर्ण है l फैसला यह भी हुवा कि जो लोग 1971 के बाद असम में आये थे, उन्हें वापस भेज दिया जाएगा। असम के आर्थिक विकास के लिए पैकेज की भी घोषणा की गयी और यहाँ ऑयल रिफ़ाइनरी, पेपर मिल और तकनीक संस्थान स्थापित करने का फ़ैसला किया गया। विधानसभा को भंग करके 1985 में ही चुनाव कराए गये, जिसमें नवगठित असम गण परिषद को बहुमत मिला। पार्टी के नेता प्रफुल्ल कुमार महंत, जो कि आसू के अध्यक्ष भी थे, मुख्यमंत्री बने। उस समय उनकी उम्र केवल 32 वर्ष की थी। छह वर्षों तक चले आंदोलनका एक सुखद अंत हुवाl

बांग्लादेश में कई बाहरी और अंदरूनी ताकतों ने छात्र आंदोलन के रुख को मोड़ा हैं l बांग्लादेश की मुक्ति के समय जमात ए इस्लामी पार्टी ने बांग्लादेश नेशनल पार्टी के साथ मिल आर बांग्लादेश की स्वतंत्रता का विरोध किया था l अभी उसके कैडरों ने आंदोलनके नाम अपर जम कर हिंसा की है और छात्र आंदोलनको हिंसक आंदोलन में बदल दिया l बड़े पैमाने पर बांग्लादेशी हिन्दू नागरिकों के घरों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों को क्षति पहुचाई l इतना ही नहीं, छात्रों ने सेना तक को यह सन्देश देना कि उनके समर्थन से ही बांग्लादेश में अंतरिम सरकार बनेगी, इस बात को रेखांकित करती है कि छात्रों के साथ बहुत से लोग अँधेरे में खड़े है, जो पीछे से उकसा रहे हैं l बांग्लादेश का छात्र आंदोलन अब पीछे रह चूका है l